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जैनघालवोधक
शिक्षा । छप्पय । दर्श दिन विषय विनोद, फेर बहु विपति परंपर। अशुचि गेह यह देह, नेह जानत न आप जरै ॥ मित्र वधु-सनमंध और, परिजन जे अंगी।
अरे अंघ सब धंध, जानि स्वारयके संगी। परहित अकाज आपनौ न करि, मूढराज अब समुझ उर। वजि लोक लाज निज काज करि, आज दाव है कहत गुर।।
कवित मनहर। जोलौं देह तेरी काहू रोगों न धेरी जोलौं, जरा नाहि नेरी जासौं पराधीन परि है । जोलौं जम नामा बैरी, देय न दमामा जोलौं, माने कान रामी बुद्धि जाय न विगरि है । तौलौं मित्र मेरे निज कारज सँवार लेरे, पौरुष यकेंगे, फेर पीछे कहा करि है | अहो भाग पायें जर झोपरी जरन लागी, कुमाके सुदायें तब कौन काज सरिहै ॥ ११ ॥ सौ बरस भायु ताका लेखा करि देखा सव, आधी तो अकारय ही सौवत विहाय रे। आधीमें अनेक रोग बाल वृद्ध दशा मोग, और हु संजोग माहि केती बीत जाय रे ।। बाकी श्रव कहा रही ताहि तू विचार सही, कारजकी बात
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दिन-ट्य' ऐसा भी पाठ है । २ जढ भवेतन । ३ पुत्र वा नाते. दार । मौका-अवसर । ५ जपतक यमनामा वैरी नगारे पर चोर देकर सचेत न करे। ६ भाझा । स्त्री।