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तृतीय भाग। २९. भूधरजैन नीत्युपदेशसंग्रह तीसरा भाग।
कतन्य शिक्षा।
मनहर। देव सांचे मान, सांचो धर्म हिये थान,
साचौं ही बखान सुन सांचे पंथ आव रे । जीवनकी दया पाल झूठ तजि चौरी टाल,
देख ना विरानी वाल तिसना घटाव रे॥ अपनी वडाई परनिंदा मत कर भाई,
यही चतुराई मदमांसको वचाव रे। साध षट कर्म साधु संगतिमें बैठ वीर,
जो है धर्म साधनको तेरे चित्त चाव रे ॥१॥
सत्यार्थ देव गुरु धर्मशास्त्र की पहचान । सांचो देव सोई जामें दोषको न लेश कोई,
वहै गुरु जाके उर काहुकी न चाह है। सही धर्म वही जहां करुणा प्रधान कही,
ग्रंथ जहां आदि अंत एकसो निवाह है। ये ही जग रत्न चार इनको परख यार,
___सांचे लेहु झूठे डार नरभोको लाह है। १ व्याख्यान अर्थात् शास्त्र ।२ परकी स्त्री । ३ साधुओंकी वा सज्जनोंकी। ४ इच्छा-उत्कंठा । ५ लाभ। -
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