________________
१०८
जैनबालवोधकमानुप विवेक विना पशुकी समान गिना, ताते याही वात ठीक पारनी सलाह है ॥२॥ सांचे देवकी पहचान।
छप्पय। जो जग वस्त समस्त, हस्त तल जेम निहारे। जगजनको संसार,--सिंधुके पार उतारै ।। श्रादि अंत अविरोधि, वचन सवको सुखदानी ।
गुन अनंत जिह माहि, रोगकी नाहिं निसानी ।। माधव महेश ब्रह्मा किधौं, वर्द्धमान के बुद्ध यह । ये चिहन जान जाके चरन, नमो नौं मुझ देव वह ॥ ३॥
___यहमें हिंसा निषेध । कहै पशु दीन सुनि जग्यके करैया मोहि, . ___ होमत हुतासनमें कौनसी बडाई है। स्वर्ग सुख मैं न चहौं 'देहु मुझे' यौंन कहौं,
घास खाय रहौं मेरे यही मन भाई है। .. जो तू यह जानत है वेद यौं वसानत है, - जग्यं जरयो जीव पावै स्वर्ग सुखदाई है। हार क्यों न वीर यामें अपने कुटुंब ही को,
मोहि जि न.जारै जगदीसकी दुहाई है ॥ ४ ॥ ..
३
-
१ विष्णु २ महादेव-शिव ३ बुद्धदेव । .