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द्वितीय अध्याय : आदश महापुरुष
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सचालन अपने हाथ मे लिया। वे नवे नद के प्रधान मत्री शकटाल के पुत्र थे, ऐसा माना जाता है । स्थूलभद्र बहुत समय तक जैन संघ के प्रधान रहे । जम्बू के बाद छह आचार्य श्रुतकेवली कहे गए है।'
स्थूलभद्र के वाद आर्य महागिरि संघपति हुए। उन्होने नग्नवेग को धारण कर प्राचीन जिनकल्प परम्परा का उद्धार किया । स्थूलभद्र के वाद आर्य सुहस्ति ने जिन सघ का नेतृत्व किया। ऐसा कहा जाता है कि इन्होने गजा अगोक के पौत्र एव उत्तराधिकारी राजा "सम्पई" सम्प्रति) को जैनधर्म में परिवर्तित किया था। राजा सम्प्रति जैनधर्म के अत्यन्त भक्त थे और उन्होने अनार्य देशो मे जैनधर्म के प्रचार मे पर्याप्त सहयोग दिया था। ____ आर्य सुहस्ति के बाद आर्य सुस्थित, सुप्रतिवुद्ध तथा इन्द्रदत्त क्रमश जैन-सघ के प्रधान वने । इनके वाद सुप्रसिद्ध आचार्य कालकाचार्य ने सघ का शासन किया। इन्होने अपने समय मे सीथियन राजाओ की सहायता से राजा गर्दभिल्ल को परास्त किया था ।२ ये राजा गातवाहन के समकालीन माने जाते है ।
इसके बाद प्रभावशाली आचार्यो मे आर्य वज्र का नाम प्रधान है। वे सवसे अतिम दशपूर्वधारी आचार्य माने गए है। ऐसा माना जाता है कि तत्कालीन पाटिलपुत्र के राजा ने उनका वडे महोत्सव के साथ सम्मान किया था। उनके समय मे दो बार देश मे लम्बे समय का अकाल पडा। पहली वार उत्तरापथ मे, दूसरी वार दक्षिणापथ मे। अपनी आयु के अतिम दिनो मे आर्य वज्र रैवतक पर्वत पर गए और अन्न-जल का त्याग कर निर्वाण प्राप्त किया।
आर्य वज्र के वाद आर्य रक्षित ने सघ का नेतृत्व ग्रहण किया। वे नवपूर्व के ज्ञाता थे। वाद के आचार्यो मे उमास्वाति, कुन्दकुन्द, सिद्धसेन दिवाकर, समन्तभद्र, हरिभद्र, अकलक, विद्यानद तथा हेमचन्द्र के नाम प्रधान है । सभी आचार्य जैनधर्म के पूर्ण मर्मज्ञ थे और
१ निशीथ चूर्णि, ५, पृ० ४३७.
निशीथ चूणि, १० पृ० ५७१ ३ आवश्यक चूर्णि, पृ० ३९०-३९६, ४०४