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जैन-अंगशास्त्र के अनुसार मानव-व्यक्तित्व का विकास अपनी गूढ गकाओ का समाधान पाकर ये दोनो उनके धर्म में दीक्षित हो गए थे।
छठे गणधर का नाम मडिक है। मडिक मौर्यसन्निवेश के रहने वाले वशिष्ठ गोत्रीय विद्वान् ब्राह्मण थे। इनके ३५० मिप्य थे। सातवे गणधर मौर्यपुत्र, काश्यप गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनका निवासस्थान भी मौर्यसन्निवेश था। ये भी ३५० छात्रो के अध्यापक थे। महावीर के अप्टम गणधर का नाम अकम्पित था। ये मिथिला निवासी गौतम गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनके ३०० शिष्य थे। नवे, दशवे तथा ग्यारहवे गणधरो के नाम अचलभ्राता, मेतार्य तथा प्रभास है । इनमे अचलभ्राता हारीत गोत्रीय, तथा अन्य दोनो कौण्डिन्य गोत्रीय ब्राह्मण थे। इन तीनो विद्वान् अध्यापको के प्रत्येक के ३०० शिष्य थे। ये सभी विद्वान् सोमिलार्य के निमत्रण पर उनके यज मे सम्मिलित होने के लिए गए थे, जहाँ पर उनकी महावीर से भेट हुई और उनके उपदेश से प्रभावित होकर वे उनके शिष्य हो गए तथा उनसे प्रव्रज्या धारण को। ___ कल्प-सूत्र मे उपर्युक्त सभी गणधरो के नाम निम्न प्रकार है१ इदभूइ ( इन्द्रभूति ), २ अग्गिभूइ ( अग्निभूति ), ३ वाउभूइ ( वायुभूति ), ४ अज्जवियत्त (आर्यव्यक्त), ५ अज्जसुधम्म (आर्यसुधर्मा ), ६ मण्डिय ( मडिक ), ७ मोरियपुत्त (मौर्यपुत्र), ८ अकम्पिय ( अकपित ), ६. अयलभाया ( अचलभ्राता), १० मेइज्ज ( मेतार्य ), तथा ११. पभास (प्रभास)।' शिष्य-परम्परा ____ महावीर अपने जीवनकाल मे चतुर्विध संघ के प्रधान थे। उनके निर्वाण के वाद स्थविर आर्य सुधर्मा सघ नायक हुए और वे २० वर्षो तक सघ का अधिपतित्व करते रहे । सुधर्मा के वाद आर्य जम्बू सध के नायक वने । वे सवसे अतिम केवली थे। जम्बू के वाद क्रम से प्रभव, गय्यम्भव, यगोभद्र और सभूतिविजय ने सघ का नेतृत्व किया। इसके बाद भद्रवाहु सघ के नेता हुए, इनके समय मे भारतवर्ष मे वहुत वडा अकाल पडा । भद्रवाहु के बाद स्थूलभद्र ने सघ का १ जनमूत्राज् भाग १ (क्ल्पसूत्र), "लिस्ट आफ स्थविराज्", पृ० २८६-२८७