________________
द्वितीय अध्याय : आदर्श महापुरुष
[७६
नियुक्ति आदि सूत्रो मे प्राप्त होता है। उनका जीवन वृत्तान्त निम्न प्रकार है
इन्द्रभूति गौतम महावीर के सवसे प्रधान शिष्य थे। ये मगध देशान्तरगत गोव्वरगाम ( गोवर ग्राम ) के निवासी गौतम-गोत्रीय ब्राह्मण वसुभूति के पुत्र थे। इन्द्रभूति वैदिक धर्म के प्रखर विद्वान्
और अध्यापक थे। एक समय वे पावा-मध्यमा निवासी सोमिलार्य के निमत्रण पर, अपने ५०० शिष्यो के साथ उनके यजोत्सव में सम्मिलित होने के लिए गए। उधर ऋजुवालिका के तट से विहार कर महावीर भी पावा-मध्यमा मे पधारे। इन्द्रभूति वादी वनकर महावीर को पराजित करने के लिए उनकी धर्मसभा मे गए, पर उन्होने इन्द्रभूति को उनके सदिग्ध वेद पदो का वास्तविक अर्थ समझाकर उनके समस्त गिष्यो के साथ अपना शिष्य बना लिया। दीक्षा के समय इन्द्रभूति की अवस्था ५० वर्ष की थी। ये महान् तपस्वी, विनीत तथा गुरु-भक्त श्रमण थे। जिस रात्रि मे महावीर का निर्वाण हुआ उसी रात्रि के अत मे इन्द्रभूति को केवल-ज्ञान प्राप्त हुआ था। इसके बाद वे १२ वर्ष तक जीवित रहकर महावीर के उपदेशो का प्रचार करते रहे। अत मे अपनी आयु समाप्त होती देखकर, इन्द्रभूति ने अपना गण आर्य सुधर्मा को सम्हलाया और मासिक अनशन के बाद ६२ वर्ष की अवस्था मे निर्वाण प्राप्त किया।
अग्निभूति तथा वायुभूति, इन्द्रभूति के छोटे भाई थे। ये दोनो भी इन्द्रभूति के समान सोमिलार्य ब्राह्मण के यज्ञोत्सव में सम्मिलित होने के लिए अपने ५०० शिष्यो के साथ महावीर के निकट आए थे और अपने सदिग्ध वेद पदो का तात्त्विक अर्थ समझकर उनके शिष्य वन गए थे। महावीर ने इन्हे विद्वान् एव अत्यन्त योग्य समझकर क्रमग द्वितीय तथा तृतीय गणधर वनाया।
चौथे तथा पाँचवे गणधर आर्यव्यक्त तथा सुधर्मा थे। ये कोल्लाग सन्निवेश निवासी तथा क्रमश भारद्वाज गोत्रीय तथा अग्नि-वेश्यायन गोत्रीय ब्राह्मण थे । ये दोनो अध्यापक थे और इनके शिष्यो की सख्या भी ५००-५०० थी। पावा-मध्यमा में महावीर के मुख से १ जैन सूत्राज् भाग १ (कल्प सूत्र, १२७, पृ० २६६).