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द्वितीय अध्याय : आदर्श महापुरुष
[७५ जाने पर वे कहते थे कि यह राशि दृष्टान्तसिद्ध है। जैसे एक वशखड के तीन हिस्से होते है-आदि, अत तथा मध्य, इसी प्रकार ससार की सभी वस्तुएँ तीन राशि वाली है। ये "त्रैराशिक धर्माचार्य के नाम से प्रसिद्ध थे।' गोष्ठामाहिल
गोष्ठामाहिल का मत था कि जिस प्रकार शरीर से कचुकादि (कुरता) का स्पर्शमात्र होता है उसी प्रकार आत्मा तथा कर्म, दोनो का परस्पर केवल स्पर्ग होता है, बधन नही। ये "अवद्धिक धर्माचार्य" कहे जाते थे। कुछ अन्य सम्प्रदाय
१ अत्तुक्कोसिय-इस सम्प्रदाय के साधु वडे स्वाभिमानी होते थे।
२ भूइकम्मिय-ये लोग भस्म द्वारा दूसरो के ज्वर आदि दूर किया करते थे।
३ भुज्जो भुज्जो कोउयकारक-ये लोग सौभाग्य प्राप्ति के लिए मंगल स्नान आदि का प्रचार करते थे। इन्हे "आभियोगिय" भी कहा जाता था।
४. चण्डिदेवग-ये लोग अपने पास एक छोटी सी तलवार (सिक्कक) धार्मिक सपत्ति के रूप मे रखते थे।
५. वगसोयरिय-ये सुइवाई (शुचिवादी) भी कहलाते थे। यदि स्नान के बाद इन्हें कोई छू लेता तो ये चौसठ वार स्नान करते थे। मथुरा के नारायण कोट मे एक "दगसोयरिय" साधु रहता था। गोवर ग्रहण करके तीन दिन के उपवास की समाप्ति का छल उसने किया था । वह स्त्री शब्द का प्रयोग नहीं करता था, और चुप रहता था। लोग उसके आचरण से इतने प्रभावित थे कि वे उसे वस्त्र तथा भोजन-पान दिया करते थे। मलयगिरि के अनुसार ये साधु साख्यमत के मानने वाले थे।
६ धमचितक-ये लोग याजवल्क द्वारा निवद्ध धर्म सहिता के चितन मे व्यस्त होकर निरतर धार्मिक ग्रन्थों का अध्ययन करते रहते थे।
१. सूत्रकृताग टी०, पृ० ३६२म २. सूत्रकृताग, टी० १. १२ पृ० २०९.