________________
( ६ )
इस अगाध भण्डार का पर्यवेक्षण, पुनर्मूल्याकन और प्रकाशन सम्भव हो सके तो भारतीय संस्कृति के पुनर्जागरण की भूमिका चरितार्थ हो सके । डा० हरीन्द्रभूषण जैन ने अगशास्त्र के अगाध अम्बुधि में अवगाहन कर महावीर की अमृतवाणी के आधार पर मानव-व्यक्तित्व के विकास की जो रूपरेखा प्रस्तुत ग्रन्थ में उद्घाटित की हे -- वह निस्संदेह समस्त विश्व मे शाति, सौहार्द एव पारस्परिक प्रेम-भावना के प्रसार की परिकल्पना साकार कर सकती है ।
भगवान् महावीर के २५०० वे निर्वाण वर्ष मे इस ग्रन्थ का प्रकारान भी एक सयोग ही है । डा० जैन ने अपनी नैष्ठिक आराधना, अध्ययन और अध्यवसाय से न केवल भगवान् की कल्याणकारी वाणी से हमे उपकृत किया है, वरन् प्राकृत भाषा के अगाध भण्डार के अव्ययन-अध्यापन की तीव्र जिज्ञामा भी जागृत कर दी है । सदियो की सचित - साधना का यह मर्मोद्घाटन स्वय में ही बहुमूल्य है । इस सप्रयत्न के लिए डा० जैन हम सबके साधुवाद के पात्र हैं | आगम निगम और पुराणो के महारण्य मे अगशास्त्र की महिमा को उद्भासित करने का यह अनुष्ठान ज्ञानपीठ को सन्मति का ही परिचायक है । भगवान् महावीर की मगलमयी वाणी जन-जन का कल्याण और मानवता का पारित्राण करे इसी विनम्र स्तवन के साथ
0
०
- शिवमंगलसिंह 'सुमन'