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प्रस्तावना
जैन-अगशास्त्र पर शोधकार्य करने के परिणाम स्वरूप, सन् १९५७ मे सागर विश्वविद्यालय से मुझे पी-एच० डी० की उपाधि प्राप्त हुई। प्रस्तुत ग्रन्थ उसी शोधकार्य का परिष्कृत रूप है।
जैन सस्कृति मे अगशास्त्र का अतिशय महत्व है। अगशास्त्र वे आगम ग्रन्य हैं, जिनका सकलन तीर्थकर महावीर की वाणी से किया गया है । यद्यपि आज यह नहीं कहा जा सकता कि अगशास्त्र के शब्द पूर्णरूप से वे ही शब्द है, जिनका प्रयोग तीर्यकर महावीर ने किया था। काल की कराल गति से वे अनेक वार छिन्न-विच्छिन्न हुए और अनेक बार उन्हे जोड कर सुरक्षित रखने का प्रयास किया गया, फिर भी आचार्य-परम्परा से प्राप्त इस अमूल्यनिधि मे प्राय मौलिकता विद्यमान प्रतीत होती है। __ आज जैन-साहित्य पर्याप्त समृद्ध हो चुका है, किन्तु हमने उस अतिप्राचीन खण्डहर मे पडी हुई वहुमूल्य कडियो को एकत्रित कर शृखलारूप मे बांध कर मानव के व्यक्तित्व-विकास को समझने की चेप्टा की है। इस प्रयास मे हमे अङ्गशास्त्र के साथ प्राय सभी जन-आगमो का अध्ययन करना पड़ा है।
जैन-आगमो पर अभी तक बहुत थोडा अनुसधान-कार्य हुआ है। डा० जगदीशचन्द्र जैन ने सबसे प्रथम जैन-आगमो पर अनुसधानकार्य किया । उनका वह कार्य अंग्रेजीभाषा मे 'लाइफ इन एंश्येंट इण्डिया एज डेपिक्टेड इन दि जैन केनन्स' नामक ग्रन्थ के रूप में प्रकाशित है। इसका हिन्दी अनुवाद भी प्रकाशित हो गया है। मैं डा० जैन के इस शोधकार्य से अत्यन्त प्रभावित हुआ। अनेक स्थलो पर उनका यह ग्रन्थ मुझे सहायक सिद्ध हुआ है, इसके लिए मैं उनका अत्यन्त कृतज्ञ हूँ। डॉ० जगदीशचन्द्र ने अपने ग्रन्थ मे जैन-आगमो मे वर्णित भारत की प्राचीन सस्कृति के दर्शन कराये हैं, और मैंने अपने ग्रन्थ को केवल आध्यात्मिक सस्कृति तक ही सीमित रखा है। ,