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जैन अगशास्त्र के अनुसार मानव-व्यक्तित्व का विकास उखाडने के काम मे लाया वह ठीक नहीं था। इस प्रकार कमल नहीं उखाडे जाते । इसका ठीक उपाय मैं जानता हूँ।" यह कहते हुए उसने वही से आवाज दी, "उड जा, पुडरीक उड़ जा।" और पुडरीक उड गया। ___ भगवान् ने इस दृष्टान्त का अर्थ समझाते हुए कहा कि, 'यह मनुष्य लोक एक वडी झील है। जीवो के शुभाशुभ कर्म इसमे जल है । काम भोग इसमे दलदल है। मनुप्य समाज इसमे पुडरीक समुदाय है । चक्रवर्ती इसमे महापुडरीक है। अन्य-तीर्थिक चार पुरुप है। धर्म भिक्षु है । धर्म-तीर्थ झील का किनारा है। धर्म-कथा भिक्षु की आवाज है, और निर्वाण वहाँ से उडना है।"
सूखी तथा गीली मिट्टी के दृष्टान्त द्वारा महावीर ने ससार से आसक्ति तथा अनासक्ति का कितना सुन्दर चित्रण किया है । “गीली और सूखी मिट्टी के दो लौदे है, उनको भीत से मारने पर जो लौदा गीला है वह भीत से चिपट जाता है और सूखा लौदा नही चिपटता। इसी प्रकार कामभोगो मे आसक्त दुष्टवुद्धि जीव तो पाप करके ससार से चिपट जाता है और जो विरक्त पुरुप है, वे सूखी मिट्टी के ढेले के समान ससार से नही चिपटते।"२ ।
तत्कालीन हिसक यजो एव जातिगत उच्च-नीच भावना के प्रति महावीर के मन मे अत्यधिक अरुचि थी, इस कारण उन्होने अपने उपदेशो द्वारा वास्तविक यज्ञ तथा सच्चे ब्राह्मण का अर्थ जनता को समझाया। उनका कहना था कि, "सत्य ज्ञान तथा ब्राह्मण के सत्य कर्म से अन मूढ पुरुष केवल "यज्ञ यज्ञ' शब्द चिल्लाया करते है किन्तु वे यज्ञ का वास्तविक अर्थ नही जानते।"3
शुद्ध अग्नि की तरह पापरहित होने से पूज्य, कुटुम्ब मे अनासक्त, सयमी, रागद्वेष आदि से दूर, सदाचारी, तपस्वी, दमितेन्द्रिय तपस्या द्वारा कृशगात्र, शान्तकषाय, अहिसक, क्रोध, लोभ, हास्यादि के वश होकर असत्य नही बोलने वाला, अल्पपरिग्रही, मैथुन का
१ सूत्र कृतांग, २११ २. उत्तराध्ययन, २५ ४२-४३. ३ वही, २५, १८