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द्वितीय अध्याय : आदर्श महापुरुष
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बगल मे नही डाले । कभी-कभी वे गीत के दिनो मे छाया में बैठकर ही ध्यान करते और कभी-कभी गर्मी के दिनो मे धूप बैठकर 19
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वस्त्र रहित होने के कारण तृण के स्पर्श, ठंड-गर्मी के स्पर्श तथा डास - मच्छर आदि के स्पर्श महावीर ने समभाव से सहन किए । महावीर चलते समय आगे पीछे पुरुष की लम्बाई के वरावर मार्ग पर दृष्टि रखकर सावधानी से चलते थे। कोई उनसे बोलता, तो भी वे बहुत कम वोलते । उनको इस प्रकार नग्न देखकर भय भीत होकर लडको का झुंड उनका पीछा करता और चिल्लाता रहता था | 3
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उजाड घर, सभा स्थान, प्याऊ और हाट ऐसे स्थानो मे महावीर अनेक वार ठहरते थे । कभी लुहार के स्थान पर तो कभी धर्मशालाओ मे, वगीचो मे, घरो मे, या नगर मे भी ठहरते थे । इस प्रकार महावीर ने १२ वर्ष से अधिक समय विताया। इन वर्षो मे रात-दिन प्रयत्नशील रहकर भगवान् अप्रमत्त होकर समाधिपूर्वक ध्यान करते, पूरी नीद न लेते, नीद मालूम होने पर उठकर आत्मा को जागृत करते । किसी समय वे करवट से हो जाते, किन्तु निद्रा की इच्छा से नही । कदाचित् निद्रा आ ही जाती तो वे उसको प्रमाद वढाने वाली समझ कर उठकर दूर करते । *
उन स्थानो पर भगवान् को अनेक प्रकार के भयंकर संकट पडे । उन स्थानो पर रहने वाले जीव-जन्तु उनको कष्ट देते । नीच मनुष्य भी उन्हे बहुत दुख देते। कई वार गाँव के चौकीदार हाथ में हथि - यार लेकर भगवान् को सताते । कभी-कभी विषय वृत्ति से स्त्रियाँ या पुरुष भगवान् को तंग करते । रात मे अकेले फिरने वाले लोग वहाँ भगवान् को अकेला देखकर उनसे पूछ-ताछ करते । भगवान् के जवाव न देने पर तो वे चिढ ही जाते थे । कोई पूछता कि तुम कौन हो तो भगवान् कहते, "मै भिक्षु हूँ ।" अधिक कुछ न कहने पर
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२. वही, १९४०
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आचारोग, १९२२ १६-१७
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वही, १९५२१
वही, १९२४२९