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________________ ५४ ] जैन- अगणास्त्र के अनुसार मानव-व्यक्तित्व का विषाम देता । कितने लोग महावीर के तप को देह-दुख और देह-दमन कहकर उसकी अवहेलना करते है, परन्तु यदि वे सत्य तथा न्याय के लिए महावीर के जीवन पर गहरा विचार करेंगे तो यह मालूम हुए बिना नही रहेगा कि महावीर का तप शुष्क देह-दमन नहीं था । वे सयम और तप दोनो पर समान रूप से वल देते थे । वारह वर्ष की कठोर और दीर्घ साधना के पश्चात् जब उन्हें अपने अहिसा तत्त्व के सिद्ध हो जाने की पूर्ण प्रतीति हुई तब वे अपना जीवनक्रम वदलते है | अहिसा का सार्वभौम धर्म उस दीर्घ तपस्वी मे परिप्लुत हो गया था । अव उनके सार्वजनिक जीवन से कितनी ही भव्य आत्माओ मे परिवर्तन हो जाने की पूर्ण सभावना थी । मगध और विदेह देश का पूर्वकालीन मलिन वातावरण धीरे धीरे शुद्ध होने लगा था, क्योकि उसमे उस समय अनेक तपस्वी और विचारक लोकहित की आकाक्षा से प्रकाश मे आने लगे थे । इसी समय दीर्घ तपस्वी भी, प्रकाश मे आए । तप आचारांग सूत्र मे भगवान् महावीर के तप का जो वर्णन मिलता है, वह वस्तुत ध्यान देने योग्य है । भगवान् महावीर प्रव्रज्या स्वीकार कर हेमंत ऋतु की सर्दी मे ही घर से बाहर निकल पडे । उस अत्यधिक गीत में भी वस्त्र से शरीर को न ढकने का उनका दृढ सकल्प था । 1 अरण्य मे विचरण करने वाले भगवान् को छोटे-बड़े अनेक जन्तुओ ने चार महीने तक अनेक कष्ट दिये और इनका मास तथा रक्त चूसा । तेरह महीने तक भगवान ने वस्त्र को कधे पर रख छोड़ा, फिर दूसरे वर्ष शिशिर ऋतु के आधी वीत जाने पर उसको भी छोडकर भगवान् सम्पूर्ण अचेलक (वस्त्र रहित ) हो गये | 3 वस्त्र न होने पर भी कठिन गीत मे वे अपने हाथो को लम्बे रख कर ध्यान करते थे । गीत के कारण उन्होने किसी भी दिन हाथ १ २. वही, १९.३. ३. वही, १९४ २२ आचाराग, १९ १ २.
SR No.010330
Book TitleJain Angashastra ke Anusar Manav Vyaktitva ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarindrabhushan Jain
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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