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जैन अंगशास्त्र के अनुसार मानव-व्यक्तित्व का विकास
मानव-वश के इतिहास में इस प्रकार की घटना सबसे अनोखी मालूम होती है । जिसे आज के वैज्ञानिक युग मे सहसा स्वीकार नही किया जा सकता। आधुनिक जैन विद्वान् प० सुखलाल जी सघवी ने इस असगत घटना का खुलासा करते हुए लिखा है कि ---
(१) महावीर की जननी तो ब्राह्मणी देवानदा ही है, क्षत्रियाणीत्रिगला नही।
(२) त्रिगला जननी तो नही है, पर वह भगवान् को गोद लेने वाली या अपने घर पर रखकर सम्वर्धन करने वाली माता अवश्य है।
त्रिगला द्वारा महावीर सम्बर्धन के अनेक कारण हो सकते है। त्रिशला के कोई अपना औरस पुत्र न होगा। स्त्री मुलभ पुत्रवासना की पूर्ति उसने देवानंदा के औरस पुत्र को अपना बनाकर की होगी। दूसरा कारण यह भी सभव है कि महावीर छोटी उम्र से ही उस समय ब्राह्मण-परम्परा मे अतिरूढ हिसक यज्ञ और दूसरे निरर्थक क्रियाकाण्डी-कुल-धर्म-विरुद्ध-सस्कार वाले तथा त्यागी प्रकृति के थे। उन्हे छोटी उम्र मे ही किसी निग्रंथ परम्परा के त्यागी भिक्षु के ससर्ग मे आने का अवसर मिला होगा और उस निर्ग्रन्थ सस्कार से उनकी स्वाभाविक त्याग वृत्ति की पुष्टि हुई होगी। महावीर के त्यागाभिमुख सस्कार, होनहार के योग्य शुभ लक्षण और निर्भयता आदि गुण देखकर उस निर्ग्रन्थ गुरु ने अपने दृढ अनुयायी सिद्धार्थ और त्रिगला के यहाँ उनको सम्वर्धन के लिए रखा होगा।'
महावीर का जन्म स्थान कुण्डपूर अथवा कुण्डग्राम है । आचाराग सत्र मे इसे सन्निवेश कहा गया है। व्याख्याकारो ने सन्निवेश का । अर्थ 'यात्रियो का विश्रामस्थल' किया है। इस कुण्डपुर की दक्षिण दिगा मे ब्राह्मण लोग रहते थे और उत्तर दिशा मे क्षत्रिय लोग । __ वौद्ध साहित्य "महावग" में लिखा है कि जव बुद्ध "कोटिग्गाम" मे थे. तव अम्वपाली नाम की वेश्या तथा समीपस्थ राजधानी वैशाली के लिच्छवी लोग उनके पास गये थे। संभवत. वौद्धो का यह "कोटिगगाम" जैनो का "कुण्डग्राम" ही हो । ऐसा मालूम होता है कि यह
१ चार तीर्थकर, पृ० ११०