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द्वितीय अध्याय आदर्श महापुरुष
[४६ कुण्डग्राम विदेह की राजधानी वैगाली का कोई मोहत्ला ही होगा। क्योकि सूत्र कृतांग मे महावीर को वैशालिक कहा गया है।' ___अवमर्पिणी काल के सुपम सुपमा, सुपमा, मुपम दुप्पमा पूर्ण रूप से समाप्त हो चुके थे तथा दुप्पम-सुपमा का भी बहुत अधिक भाग समाप्त हो चुका था । केवल ७५ वर्प माह अवगिष्ट थे। उस समय आपाढ शुक्ला पप्ठी के उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में महावीर ने स्वर्ग से उतर कर जम्बूद्वीप भारतवर्ष मे ब्राह्मणी देवानदा के गर्भ मे सिंहरूप मे प्रवेग किया।
माह ७॥ दिन व्यतीत होने पर चैत्र-कृष्णा त्रयोदगी को क्षत्रियाणी त्रिशला के गर्भ से महावीर का जन्म हुआ। उसी रात्रि को देवताओ ने अमृत, गध, चूर्ण, पुष्प और रत्नो की बहुत वृष्टि की, तथा भगवान् का अभिषेक, तिलक और रक्षावन्धन आदि किया।
जिस दिन से महावीर ने रानी त्रिगला के गर्भ मे प्रवेग पाया, उसी दिन से राजा सिद्धार्थ के घर मे धन-धान्य की अत्यधिक वद्धि हुई, मत जन्म से ११वे दिन राजा सिद्धार्थ ने अपने सगे सवधियो को बुलाकर उन्हे भोजनादि द्वारा सतुष्ट करके यह घोपित किया कि "जव से कुमार ने रानी त्रिगला के गर्भ मे प्रवेग पाया है, हमारे घर मे धन-धान्य की अनेक प्रकार से वृद्धि हुई है । अत कुमार आज से 'वर्द्धमा' न इस नाम से सम्बोधित किए जायेगे।
महावीर के सम्वर्धन के लिए पाँच दाइयाँ रखी गई थी-१ दध पिलाने वाली, २ स्नान कराने वाली, ३. कपडे पहिनाने वाली, ४ खिलाने वाली और ५ गोद से रखने वाली।
भगवान के तीन नाम थे-माता-पिता का रखा हआ नाम 'वर्द्धमा' न था। अपने वैराग्य आदि सहज गुणों से प्राप्त 'श्रमण' नाम था, और अनेक उपसर्ग-परिपह सहन करने के कारण देवो का रखा आ 'श्रमण भगवान् महावीर' नाम था ।
भगवान के पिता के भी तीन नाम थे-सिद्धार्थ, श्रेयास और जसस (यशस्वी) । भगवान् की माता के भी त्रिगला, विदेहदिन्ना और प्रियकारिणी तीन नाम थे। भगवान् के काका का नाम
१. जैन सूत्राज्, भाग १, प्रस्तावना पृ० १० तथा ११., मूत्र कृताग १।३.