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द्वितीय अध्याय : आदर्श महापुरुष
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पारवपित्यिक निर्ग्रन्थ केशी तथा महावीर के शिष्य गौतम के परस्पर मिलन - वार्ता और अत मे केशी के महावीर सघ मे सम्मिलित होने की बात हम पहिले ही कह चुके है ।
भगवती सूत्र मे कुछ ऐसे थेरो ( स्थविरो) का वर्णन मिलता है जो कि राजगृह में महावीर से मर्यादापूर्वक मिले, कुछ आध्यात्मिक प्रश्न किये, शान्तिपूर्वक उनका उत्तर सुना, और महावीर की सर्वज्ञता की प्रतीति कर उनके शिष्य वन गये । १
आवश्यक चूर्णि मे ऐसे अनेक पावपित्यिको का वर्णन मिलता है जो कि महावीर के भ्रमण काल मे उपस्थित थे । उप्पल ऐसा ही एक पार्श्व का अनुयायी था, जिसने कि साधु-जीवन की कठिन तपस्या से घवडाकर गृहस्थ धर्म को स्वीकार कर लिया था और फिर "अट्ठियागाम" मे भविष्यवक्ता (नमित्त) का व्यवसाय कर अपना जीवन व्यतीत करने लगा था ।
सीमा और जयन्ती नाम की उसकी दो वहिनो ने भी पार्श्व का धर्म स्वीकार किया था, किन्तु उसकी कठोरता से घबडाकर श्रमणधर्म छोडकर वैदिक धर्म को अपना लिया था । 3
तुगियाग्राम पावपित्यिक थेरो का केन्द्र माना गया है । वहाँ पर पार्श्व के अनुयायी साधु ५०० का सघ बनाकर भ्रमण किया करते थे । उस ग्राम के निवासी पावपित्यिक श्रावक उनके पास धर्म-श्रवण के लिए जाया करते थे और उनसे खूब तत्त्व चर्चा किया करते थे । एक वार राजगृह मे भगवान् महावीर ने गौतम द्वारा पार्श्वपित्यिक थेरो और श्रावको की धर्म चर्चा की बात सुनी थी । ४
नायाधम्मकहाओ मे वर्णन है कि श्रमणोपासका काली को वैराग्य उत्पन्न हो गया और उसने आर्यिका पुष्पचूला के निकट भगवान् पार्श्व के धर्म को स्वीकार किया ।"
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भगवती सूत्र, ५९ २२६ आवश्यक चूर्ण, पृ० २७३ वही, पृ० २८६
भगवती सूत्र, २५. नायाधम्मकहाओ, २१ पृ० २२२