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________________ ४२ ] ॐन-अंगशास्त्र के अनुसार मानव-व्यक्तित्व का विधाम दृष्टि से काम लिया। उन्होने सलत्व और अचेलत्व-दोनो को निग्रन्थसघ के लिए यथाशक्ति और यथारुचि स्थान दिया। इसी कारण उनके निर्ग्रन्थ सघ में मचेल और अचेल दोनो निग्रन्थ अपनी-अपनी रुचि एव भक्ति का विचार करके ईमानदारी के साथ परम्पर उदार भाव से रहे । महावीर का कहना था कि मुक्ति के लिए तो मुग्य और पारमार्थिक लिग-साधन, जान, दर्शन, चारित्र रूप आध्यात्मिक सपत्ति है, अचेलत्व या सचेलत्व यह तो लौकिक वाह्य लिगमात्र है, पारमार्थिक नही ।' पार्श्वसंघ जैन आगम-ग्रन्थो मे अनेक जगह पाव तथा उनके अनुयायियों का (पासाच्चिज्ज-पाश्र्वापत्यिक) वर्णन मिलता है। हम कह चुके है कि भगवान महावीर के माता-पिता पाव के अनुयायी थे। ___ कालासवेसी नामक पारर्वापत्यिक का वर्णन भगवती सूत्र मे है जो कि किन्ही स्थविरो मे मिला और जिसने सामायिक, सयम, प्रत्याख्यान, कायोत्सर्ग आदि पर अनेक प्रश्न किये। स्थविरो द्वारा संतोपपूर्ण उत्तर पाने के वाद कालासवेसी ने महावीर के पचमहाव्रत और प्रतिक्रमण धर्म को स्वीकार किया !२ ___ भगवती सूत्र में एक अन्य जगह गागेय नामक पापित्यिक का वर्णन है । वाणिज्य ग्राम मे जाकर उसने भगवान् महावीर से जीवो की उत्पत्ति, च्युति के सबध मे प्रश्न किया। भगवान् महावीर से सतोपपूर्ण उत्तर पाकर गागेय को उनकी सर्वत्रता की प्रतीति हुई और अत मे वह सप्रतिक्रमण पचमहाव्रत स्वीकार कर महावीर के संघ का अग वन गया । सूत्रकृतांग मे एक पार्वापत्यिक उदक पेढाल का वर्णन है, जो कि गौतम के पास आया और कुछ प्रश्नो का सयुक्तिक उत्तर पाकर महावीर के संघ में सम्मिलित हो गया। १. चार तीर्थकर, पृ १५० २ भगवती मूत्र, १. ९ ७६ ३ वही, ६ ३२ ३७८, ३७९. ४ सूत्रकृताT, नालदीय अध्ययन, २. ७ ७१, ७२, ८१.
SR No.010330
Book TitleJain Angashastra ke Anusar Manav Vyaktitva ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarindrabhushan Jain
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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