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द्वितीय अध्याय : आदर्श - महापुरुष
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उनकी अपनी ही थी अथवा किसी पूर्ववर्ती साधु की, इस विषय मे पाञ्चात्य ऐतिहासिक सदिग्ध अवश्य थे । डा० याकोवी जैसे विद्वानो ने उनका सदेह निवारण किया और अकाट्य प्रमाणो के आधार पर यह सिद्ध किया कि भगवान् पार्श्वनाथ नि.सदेह एक ऐतिहासिक महापुरुष है । इस विषय मे डा० याकोवी ने जो प्रमाण दिए उनमे जैन आगमो के अतिरिक्त वौद्ध-पिटक का भी समावेश होता है । वौद्धपिटकात उल्लेखों से जैनागमगत वर्णनो का मेल विठाया गया, तव ऐतिहासिको की प्रतीति दृढतर हुई कि महावीर के पूर्व पार्श्वनाथ अवश्य हुए है । 1
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भगवान् पार्श्वनाथ की ऐतिहासिकता सिद्ध हो जाने के बाद इस वात मे भी कोई संदेह नही रहा कि भगवान महावीर को जैनआचार-विचार की परम्परा पार्श्वनाथ से मिली थी । भगवान् महावीर के पिता पार्श्वनाथ के अनुयायी थे, अत उन्हें जैनागमो मे "पाश्र्वापत्यिक" कहा गया है । प्राप्त आगमग्रन्थो मे अनेक जगह पार्श्वनाथ और उनकी परम्परा के सम्बन्ध मे सूचना प्राप्त होती है | आचाराग, सूत्रकृताग, स्थानांग, भगवती, उत्तराध्ययन और कल्पसूत्र इस विपय मे अधिक महत्त्वपूर्ण है |
भगवान् पार्श्वनाथ का जन्म वाराणसी (बनारस) मे हुआ था । राजा अश्वसेन उनके पिता थे । उनकी माता का नाम वामादेवी था । पौष कृष्णा दशमी को उन्होने गर्भ मे प्रवेश किया और माह ७|| दिन के वाद पृथ्वी पर जन्म लिया । उनकी माता ने स्वप्न - काल मे पास मे रेंगते हुए काले सर्प को देखा था, अत उनका नाम पार्श्वनाथ रखा गया । ३० वर्ष तक वे घर मे रहे, और इसके वाद पौप कृष्णा एकादशी के दिन विगाला नाम की शिविका पर आरोहण करके बनारस से सीधे आश्रमपद नाम के उपवन मे आए तथा अगोक वृक्ष के नीचे उन्होने पचमुष्टि केगलुच किया ।
साढे तीन दिन का निर्जल उपवास कर ३०० अन्य मनुष्यों के साथ अवशिष्ट केगो को उखाड कर भगवान् पार्श्व ने अनगार
१ जैनमूत्राज्, भाग २, प्रस्तावना, पृ० २१
२. आचाराग २, भावचूलिका ३, सूत्र स० ४०१, पृ० ३८