________________
३६ ]
जैन-अंगशास्त्र के अनुसार मानव-व्यक्तित्व का विकास
अति आग्रहवा, उनका विवाह सम्बन्ध जूनागढ के महाराज उग्रसेन की सुगीला, सुनयना सुपुत्री राजीमती के साथ निश्चित हुआ।
भरपूर ठाटवाट के साथ समस्त यादवकुल सहित कुमार अपने विवाह के लिए चल पडे । उनके श्वसुर ने मासाहारी अतिथियो के सत्कार के लिए कुछ पशुओ को अपने घर के निकट एक वाडे मे वद कर रखा था । जव वारात उस वाडे के निकट पहुँची तो कुमार ने भय से पीडित एव चीखते-चिल्लाते हुए उन पशुओ को दखकर सारथि से पूछा कि ये इतने पशु इस तरह क्यो रोके गए है । अरिष्टनेमि को यह जानकर अत्यन्त दुख हुआ कि मेरे विवाह मे अतिथियो के सत्कारार्थ इन पशुओ का वध किया जाने वाला है। वे वोले कि यदि मेरे विवाह के निमित्त इतने पशुओ का जोवन संकट में है तो धिक्कार है ऐसे विवाह को, अव मै विवाह नही करूँगा। वे तत्क्षण रथ से नीचे उतर पडे और मुकुट तथा कगन को फेक कर वन की ओर चल दिए । वारात मे इस समाचार के फैलते ही कुहराम मच गया । जूनागढ के अन्त पुर मे जव राजीमती को यह समाचार मिला तो वह मूच्छित होकर गिर पड़ी। वहुत से लोग नेमिनाथ को लौटाने के लिए दौडे, किन्तु व्यर्थ । वे पास ही में स्थित गिरनार पर्वत पर चढ गए और सहस्राम्रवन मे दिगम्वर हो आत्मध्यान मे लीन हो गए। ___ होग आने पर राजीमती ने सोचा कि राजकुमार ने मुझे त्याग दिया, राजपाट तथा ऐश्वर्य सुख छोड कर उन्होने दीक्षा धारण की और वे योगी बन गए किन्तु मैं अभी तक घर मे ही हूँ। मेरे जीवन को धिक्कार है, मुझे भी दीक्षा लेनी चाहिए, इसी मे मेरा कल्याण है। यह सोचकर विदुपी राजीमती ने वहुत-सी सहेलियो तथा सेविकाओ के साथ दीक्षा धारण की और उसी गिरनार पर्वत पर तप करने लगी।
भगवान् पार्श्वनाथ आधुनिक जैन-परम्परा के निर्माता महावीर है, इसमे किसी भी विद्वान् को सदेह नहीं है। किन्तु महावीर की आचार-विचार परम्परा.
१
उत्तराध्ययन, अ० २२, "रथनेमीय", पृ० २२९