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जैन अंगशास्त्र के अनुसार मानव-व्यक्तित्व का विकास वायाग मे इन चौवीस तीर्थकरो को देवाहिदेव (देवाधिदेव) कहा गया है, क्योकि ये इन्द्रादि देवताओ के भी पूज्य है।' भगवान् ऋषभ
भगवान् पार्श्वनाथ तथा भगवान् महावीर, ये दोनो ऐतिहासिक महापुरुप है, यह प्राय सभी आधुनिक पूर्वीय तथा पाश्चात्य विद्वान् स्वीकार कर चुके है । २ भगवान् नेमिनाथ (अरिष्टनेमि) तक भी इतिहास की कुछ किरणे पहुँच चुकी है, किन्तु भगवान् ऋषभ के वारे में अभी तक कुछ भी सुनिश्चित रूप से ज्ञात नही है। ____ इस वात को तो प्राय सभी विद्वान स्वीकार करते है कि भगवान् ऋपभ जैनधर्म के संस्थापक थे। डा० याकोवी कहते हैं कि--इसमे कोई भी प्रमाण नही कि पार्श्वनाथ जैनधर्म के संस्थापक थे। जैनपरम्परा प्रथम तीर्थकर ऋपभदेव को जैन धर्म का सस्थापक मानने मे एकमत है । इस मान्यता मे ऐतिहासिक सत्य की सम्भावना है।
डा० याकोबी के इस मत से डा० सर राधाकृष्णन भी सहमत है। उनका कहना है कि जैन परम्परा ऋपभदेव से अपने धर्म की उत्पत्ति होने का कथन करती है, जो वहुत-सी गताब्दियो पूर्व हुए थे। इस वात के प्रमाण पाए जाते है कि ईसा-पूर्व प्रथम शताब्दी में प्रथम तीर्थकर ऋपभदेव की पूजा होती थी। इसमें कोई सदेह नही कि जैनधर्म वर्द्धमान और पार्श्वनाथ से भी पहिले प्रचलित था। यजुर्वेद मे ऋपभदेव, अजितनाथ और अरिष्टनेमि-इन तीन तीर्थकगे के नामो का निर्देश है। भागवत-पुराण भी इस वात का समर्थन करता है कि ऋपभदेव जैनधर्म के संस्थापक थे।४ भागवत में ऋषभदेव
ब्राह्मण परम्परा और उसमे भी विगेप रूप से वैष्णव-परम्परा का वहुमान्य और सर्वत्र अतिप्रसिद्ध ग्रन्थ भागवत है, जिसे भागवत१ समवायाग, मूत्र २४ २ जैनमूत्राज भाग १, प्रस्तावना, पृ० १००
इण्डियन एण्टीक्वेरी , पुस्तक ९, पृ० १६३ इण्डियन फिलासफी, पुस्तक १, पृ० २८७