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द्वितीय अध्याय : आदर्श महापुरुष
[२५ पुराण भी कहते है। इनमें ऋप मदेव का सुन्दर वर्णन है जो कि जैन-परम्परा के वर्णन से वहत अगो मे मिलता है। उसमे लिखा है कि-"जव ब्रह्मा ने देखा कि मनुष्य सख्या नही बढी तो उसने स्वयभू मतु और सतरूपा को उत्पन्न किया। उनके प्रियव्रत नाम का लडका हुआ, प्रियव्रत का पुत्र अग्नीध्र हुआ, अग्नीध्र के घर नाभि ने जन्म लिया । नाभि ने मरुदेवी से विवाह किया और उनसे ऋपभदेव हुए । ऋपभदेव ने इन्द्र के द्वारा दी गई जयन्ती नाम की भार्या से सौ पुत्र उत्पन्न किए और वडे पुत्र भरत का राज्याभिषेक करके सन्यास ले लिया। उस समय केवल गरीरमात्र उनके पास था और वे दिगम्बर वेश में नग्न विचरण करते थे, मौन रहते थे, कोई डराए, मारे, ऊपर थूके, पत्थर फेके, मूत्र-विष्टा फेके, तो इन सवकी ओर ध्यान नहीं देते थे। यह गरीर असत् पदार्थों का घर है, ऐसा समझकर अहकार-ममकार का त्याग करके अकेले भ्रमण करते थे। उनका कामदेव के समान सुन्दर गरीर मलिन हो गया था। उनका क्रिया-कर्म वडा भयानक हो गया था । गरीरादिक का मुख छोडकर उन्होने "आजगर" व्रत ले लिया था। इस प्रकार कैवल्यपति भगवान् ऋपभदेव निरन्तर परम आनन्द का अनुभव करते हुए भ्रमण करते-करते कोक, बैक, कुटक, दक्षिण कर्नाटक देशो मे अपनी इच्छा मे पहुँचे, और कुटिकाचल पर्वत के उपवन में उन्मत्त के समान नग्न होकर विचरने लगे। जगल मे वाँसो की रगड से आग लग गई और उन्होने उसी में प्रवेश करके अपने को भस्म कर दिया ।"१
इस तरह ऋपभदेव का वर्णन करके भागवतकार आगे लिखते है कि-"इन ऋषभदेव के चरित्र को सुनकर कोक, बैक, कुटक देगो का राजा अर्हन् उन्ही के उपदेश को लेकर कलियुग मे जव अधर्म वहुत हो जाएगा तव स्वधर्म को छोडकर कुपथ पाखड (जैनधर्म) का प्रवर्तन करेगा। तुच्छ मनुप्य माया मे विमोहित होकर, गौच आचार को छोडकर ईश्वर की अवजा करने वाले व्रत धारण करेगे। न स्नान, न आचमन । ब्रह्म, ब्राह्मण, यन सबके निदक ऐसे पुरुप होगे, जो वेद विरुद्ध आचरण करके नरक मे गिरेगे।
१ श्रीमद्भागवत स्कन्व ५, अध्याय २