________________
प्रथम अध्याय : अंगशास्त्र का परिचय
[३
आवश्यकव्यतिरिक्त। आवश्यक श्रुत सामायिकादि' के भेद से छह प्रकार का है । आवश्यकव्यतिरिक्त श्रुत दो प्रकार का है-कालिकश्रुत तथा उत्कालिक २ श्रुत । उत्कालिक श्रुत दगवैकालिक, कल्पाकल्प आदि के रूप मे २६ प्रकार का है । कालिक श्रुत उत्तराध्ययनसूत्र, दगाश्रुतस्कन्ध आदि के रूप मे अनेक प्रकार का है। अगप्रविष्ट श्रुत आचाराग आदि के रूप मे १२ प्रकार का है।
वर्तमान मे सर्वज्ञप्रणीत (अर्हत द्वारा उपदिष्ट) ३२ आगम ही प्रमाण कोटि मे आते है-११ अगशास्त्र (अन्तिम अग दृप्टिवाद का लोप हो गया है), १२ उपागगास्त्र, ४ मूलगास्त्र, ४ छेदगास्त्र तथा १ आवश्यक सूत्र ।।
१२ अगशास्त्रो के नाम हम ऊपर लिख चुके हैं। उपागगास्त्रो के नाम ये है-१ औपपातिकशास्त्र, २ राजप्रश्नीयशास्त्र, ३ जीवाभिगमगास्त्र, ४ प्रजापनाशास्त्र, ५ जम्बूद्वीपप्रजप्तिशास्त्र, ६. सूर्यप्राप्तिशास्त्र, ७ चन्द्रप्रज्ञप्तिशास्त्र, ८ निरयावलिकाओ, ६ कप्पडिसियाओ, १० पुप्फियाओ, ११ पुप्फचूलियाओ तथा १२ वहिदसाओ।।
- ४ मूल गास्त्र ये है-१. दशवैकालिकशास्त्र, २ उत्तराध्ययनशास्त्र, ३. नन्दीशास्त्र तथा ४ अनुयोगद्वारशास्त्र ।
४ छेदशास्त्र ये है-१. व्यवहारशास्त्र, २ वृहत्कल्पगास्त्र, ३ दगाश्रुतस्कन्धशास्त्र, ४ निशीथशास्त्र ।
इस प्रकार ३१ आगम तथा १ आवश्यकशास्त्र मिलाकर कुल ३२ आगम प्रमाणित माने जाते है।
१ सामायिक, चतुर्विशतिस्तव, वन्दना प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग, तथा प्रत्याख्यान- ये छह आवश्यक श्रुत के भेद हैं।
-नन्दीमूत्र ४३ पृ० ११५ २ जो दिन और गत के प्रथम तथा अन्तिम पहर रूप काल मे पढे जाते है,
वे कालिक तथा जो उससे भिन्न समय मे पढे जाते है वे उत्कालिक श्रुत
है। -नन्दीमूत्र (हि०) पृ० ११८ ३ नन्दीसूत्र, ४४ । ४ अनुतरोपपातिक दशासूत्र, (हि.), प्रस्तावना पृ० ३-४.