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________________ षष्ठ अध्याय : श्रमण-जीवन [ १६१ वैयावृत्य के प्रकरण मे साधु के १० भेद किए गए है'.-. १. आचार्य २ उपाध्याय ३. स्थविर ४ तपस्वी ५. ग्लान ७ शैक्ष ७ कुल ८ गण ६. संघ १० सार्मिक । मुख्य रूप से जिसका कार्य व्रत और आचरण ग्रहण कराने का है, वह आचार्य है । जिसका मुख्य कार्य श्रु ताभ्यास कराने का है, वह उपाध्याय है । जो दीक्षा आयु तथा गुणो मे आपेक्षिक रूप से वृद्ध है, वह स्थविर कहलाता है । जो महान और उग्र तप करने वाला है, वह तपस्वी है । जो रोग आदि से क्षीणशरीर हो, वह ग्लान है, जो नवदीक्षित हो कर शिक्षण प्राप्त करने के लिए तत्पर हो वह शैक्ष है। एक ही दीक्षाचार्य का शिष्य-परिवार कुल कहलाता है। पृथक्-पृथक आचार्यों के शिष्यरूप साधु यदि परस्पर सहाध्यायी हो तो उनका समुदाय गण कहलाता है । एक ही आचार्य के अनुशासन मे रहने वाले श्रमणो का समुदाय संघ कहलाता है। ज्ञान आदि गुणो मे समान अथवा एक ही धर्म, सम्प्रदाय को मानने वाले सार्मिक कहलाते है । ___ समवायाग मे शवल साधु (चरित्रभ्रष्ट) के २१ प्रकार वताए गए है। १ हस्तक्रिया द्वारा कामोन्माद शान्त करने वाला। २ मैथुनसेवन मे आसक्त । ३ रात्रि भोजन करने वाला। ४ सदुप्ट आहार पुन पुनः ग्रहण करने वाला। ५ शय्यातर (आश्रयस्थानदाता) के यहाँ से आहार ग्रहण __ करने वाला। ६ साधु के निमित्त से बनाये हुए, खरीदे गए तथा लाए गए भोजन को ग्रहण करने वाला। ७ दिन मे बार बार भोजन करने वाला। ८. छह माह के भीतर एक श्रमणसघ को छोड़ अन्य संघ मे जाने वाला। है एक माह के भीतर तीन बार उदकलेप (नाभिप्रमाण जलावगाहन) करने वाला । १. स्थानाग, ७१३, पृ० ४४९ । २ समवायाग २१ ।
SR No.010330
Book TitleJain Angashastra ke Anusar Manav Vyaktitva ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarindrabhushan Jain
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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