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जैन-अगशास्त्र के अनुसार मानव-व्यक्तित्व का विकास
निग्रन्थ प्रवचन उपादेय है - यह निग्रन्थ-प्रवचन क्लीव, कापुरुष, इस लोक मे प्रतिवद्ध तथा परलोक मे अचेत एवं नीच पुरुषो के लिए कष्ट से आचरण करने के योग्य है । परन्तु जो व्यक्ति धीर एवं उद्यमशील है, उन्हें इस निःश्रेयस प्रवचन मे कुछ भी दुग्कर नही है । यह निग्रन्थप्रवचन सत्य, सर्वश्रेष्ठ, न्याययुक्त, पापकर्मों का नाश करने वाला, मोक्ष का मार्ग तथा सम्पूर्ण दुःखो से मुक्त कराने का एक मात्र
उपाय है ।'
सदाचार ग्राह्य है - यह ससार जरा एवं मरण के द्वारा प्रदीप्त है । जिस प्रकार कोई गृहपति अपने घर मे आग लग जाने पर उसमे से अल्पभार एवं बहुमूल्य वस्तुओं को ग्रहण करके एकान्त मे चला जाता है, यह सोचता हुआ कि ये वस्तुएँ हमे अग्रिम जीवन-यात्रा मे सुख तथा नि श्रेयस आदि का साधन बनेगी। इसी प्रकार उपासक के पास आचाररूप वस्तु है, जो अत्यन्त इष्ट है तथा संसार का नाश करने वाली है |
१. नायाधम्मकहाओ १, २८ पृ० २८ २. अन्तगडदसाओ प्रथमवर्ग, पृ० ४ ।