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________________ १७० ] जैन- अगशास्त्र के अनुसार मानव-व्यक्तित्व का विकास मे क्षमा, दया, सहनशीलता आदि मानवीय गुणो का विकास होने लगता है । ' ३. सामायिक प्रतिमा - दर्शन तथा व्रतप्रतिमा से युक्त उपासक, प्रात मध्याह्न तथा साय, जो सामायिक (समभाव, की साधना करता है, वह सामायिकप्रतिमा है । मन को एकाग्र कर वाह्य आभ्यतर परिग्रह का त्याग कर कुछ निश्चित समय तक आत्मा तथा परमात्मा का ध्यान करना व जीवन मे समभाव का आचरण करना सामायिक कहलाता है । ४ पौषधप्रतिमा - उपर्युक्त तीन प्रतिमाओं से युक्त उपासक प्रत्येक अष्टमी तथा चतुर्दशी को ४८ घंटे तक आहारपानी का पूर्ण त्याग कर धर्माचरण मे समय व्यतीत करता है; उसे पौपधप्रतिमा कहा जाता है | 3 ५ प्रतिमाप्रतिभा - इस प्रतिमा - ग्रहरण के पहिले यह आवश्यक है कि उपासक द्वारा सम्यक्त्व, अणुव्रत, गुरणव्रत, तथा शिक्षाव्रत एवं सामायिक तथा पौपधप्रतिमा का अच्छी तरह यथाकाल पालन कर पूर्ण अभ्यास कर लिया जा । जो उपासक प्रत्येक अष्टमी तथा चतुर्दशी की रात्रि मे प्रतिमा की तरह निश्चल रहता है, केवल दिन मे ही भोजन करता है, ढीले वस्त्र पहिनता है, दिन मे पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करता है, रात्रि मे भी अधिक कामभोगो मे संलग्न नही रहता, दिन मे प्रतिमा की तरह आसन मे स्थिर हो कर त्रिलोकपूज्य, जितकपाय 'जिन' का ध्यान करता है अथवा आत्मदोषो को नष्ट करने वाले किसी अन्य तत्व ( आत्मादि ) का ध्यान करता है, वह पंचमप्रतिमाधारी है ।" ६. अब्रह्मवर्जनप्रतिमा - उपर्युक्त पाच प्रतिमा के पूर्ण परिपालन के बाद सासारिक कामभोगो से मुक्ति पा लेना अब्रह्मवर्जनप्रतिमा है । इस प्रतिमा को धारण करने वाला व्यक्ति रात्रि मे भी शृंगारपूर्ण चर्चा, उपासकदशाग अभयदेवसूत्रवृत्ति पृ० २७ फुटनोट न० १ । पृ० २७ फुटनोट न० २ । पृ० २७ फुटनोट न० ३ । १ २ . वही ३ वही ४ 11 13 वही पृ० २७ नोट न० ४ । 1
SR No.010330
Book TitleJain Angashastra ke Anusar Manav Vyaktitva ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarindrabhushan Jain
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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