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पंचम अध्याय उपासक-जीवन
[ १७१ स्त्रियो से अतिपरिचय तथा अपने शरीर की सजावट आदि से दूर रहता है । १
७ सचित्ताहारवर्जनप्रतिमा-पूर्वप्रतिमाओ के अभ्यासपूर्वकसचित्त वस्तुओ के भक्षण का त्याग करना सचित्ताहारवर्जन प्रतिमा
८. स्वयमारम्भवर्जनप्रतिमा-पूर्व प्रतिमाओ के पालन के साथ घर मे सदोप कार्य के स्वयं न करने का नियम लेना, स्वयमारम्भवर्जन प्रतिमा है । आवश्यकता पड़ने पर अन्य व्यक्ति के द्वारा गृहकार्य कराया जा सकता है।
६. परारम्भवर्जनप्रतिमा-पूर्व प्रतिमाओ के गुणो से युक्त होकर उपासक, दूसरे व्यक्ति के द्वारा भी सदोपगृहकार्यो के न कराने का जो नियम लेता है, वह परारम्भवर्जनप्रतिमा है।
१०. उद्दिष्टभक्तवर्जनप्रतिमा-पूर्वप्रतिमाओ का पालन करते हुए उपासक अपने उद्देश्य से तैयार किए गए भोजन का जो त्याग करता है; वह उद्दिष्टभक्तवर्जनप्रतिमा है। इस प्रतिमा मे सपूर्ण प्रकार के आरम्भ का त्याग हो जाता है, सिर को पूर्णरूप से मुंडित कर दिया जाता है, अथवा एक छोटी-सी शिखा रख ली जाती है। किसी वस्तु के सम्बन्ध मे पूछे जाने पर यदि जानता है तो उपासक कहता है कि मैं जानता हू; यदि नही जानता है तो कहता है कि मैं नही जानता हू। अर्यात-अपने आपको उपासक वता कर वह सासारिक विवादो में अधिक व्यस्त नहीं होता।" ___ ११ श्रमणभूतप्रतिमा-ग्यारहवी प्रतिमा मे उपासक अपने सिर को पूरा मुंडा लेता है। वह श्रमणवेश तथा उपकरणी को
उपासकदशांग अभयदेवसूत्रवृत्ति पृ० २८ नोट न० १ । २. वही , पृ० २८ नोट न० २। ३. वही
पृ० २८ नोट न० ३ । पृ० २८ नोट न०४। पृ० २८ नोट न०५।
वही