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पचम अध्याय . उपासक जीवन
१. दंसणपडिमा ( दर्शनप्रतिमा) २. वयपडिमा ( व्रतप्रतिमा) ३. सामाइयपडिमा ( सामायिकप्रतिमा)
४ पोसहपडिमा (पौषधप्रतिमा)
५. पडिमापडिमा (प्रतिमाप्रतिमा)
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६. अवम्भवज्जनपडिमा (अब्रह्मवर्जनप्रतिमा) ७ सचित्ताहारवज्जरणपडिमा (सचित्ताहार वर्जनप्रतिमा) ८. सयमारम्भवज्जणपडिमा ( स्वयमारंभवर्जनप्रतिमा)
९ पेसा रम्भवज्जणपडिमा (प्रेष्यारम्भवर्जनप्रतिमा) १० उद्दिट्ठभत्तवज्जणपडिमा (उद्दिष्टभक्तवर्जनप्रतिमा) ११ समणभूयपडिमा (श्रमणभूतप्रतिमा)
प्रथम प्रतिमा का काल एक माह है, द्वितीय प्रतिमा का काल दो माह है, इस प्रकार एक एक प्रतिमा एक एक माह अधिक तक बढती जाती है | अंतिम ग्यारहवी प्रतिमा का काल ग्यारह माह है । इस प्रकार समस्त प्रतिमाओ का पूरा काल पाँच वर्ष छह माह होता है । प्रत्येक प्रतिमा के धारण से पहिले उपासक के द्वारा उससे पहिले की प्रतिमा का यथाकाल यथानियम अभ्यास कर लिया जाना आवश्यक है । '
१. दर्शनप्रतिमा - जीव, अजीव, आश्रव, बंध, संवर, निर्जरा, मोक्ष पुण्य एव पापरूप नव पदार्थों पर यथार्थ श्रद्धा होना सम्यगदर्शन है । जव उपासक इस सम्यग्दर्शन का शंकादिदोषो से रहित हो कर निर्दोष रूप मे पालन करता है, तब उसके दर्शनप्रतिमा कही जाती है ।
२ व्रतप्रतिमा - दर्शनप्रतिमा का पूर्ण अभ्यास कर लेने के बाद अतिचाररहित पाच अणुव्रतो तथा सात शिक्षाव्रतो के पालन की प्रतिज्ञा करना व्रतप्रतिमा है । इस प्रतिमा के साथ ही मनुष्य
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उपासकदशांक (अभयदेवसूत्रवृत्ति) पृ २६ ।
२. उपासकदशाग (अभयदेवसूत्रवृत्ति) पृ० २६ फुटनोट नं ० १ ।