________________
१६४ ]
जैन-अगशास्त्र के अनुसार मानव-व्यक्तित्व का विकास
३. मोहरिए (मौखर्य)- धृष्टतापूर्वक असत्य एवं असम्बद्ध प्रलाप करना, फिजूल बकवास करना ।
४. संजुत्ताहिकरणे (संयुक्ताधिकरण)-ऊखल, मूसल आदि को संयुक्त करके रखना।
५ उवभोगपरिभोगाइरित्त (उपभोगपरिभोगातिरिक्त)-भोजन, स्नान आदि की वस्तुओं का आवश्यकता से अधिक रूप मे उपभोग करना।
सामायिक--जनसाधना मे सामायिक व्रत का बहुत बड़ा महत्त्व है। सामायिक का अर्थ है समता। रागद्वेषवर्धक संसारी प्रपंचो से अलग हो कर जीवनयात्रा को निष्पाप एवं पवित्र बनाना ही समता है। गृहस्थ जीवन-पर्यन्त सब पापव्यापारो का पूर्णरूप से त्याग कर पवित्र जीवन नही बिता सकता । अत उसे प्रतिदिन कम से कम ४८ मिनट (एक मुहूर्त) के लिए तो सामायिक व्रत धारण करना ही चाहिए। सामायिक करते समय उपासक श्रमण जैसा हो जाता है । यह गृहस्थ की सामायिक साधु की सामायिक की भूमिका है। सामायिक करने के लिए उपासक किसी एकान्त निर्बाध स्थान मे आसन बिछा कर अल्पवस्त्र धारण कर कम से कम ४८ मिनट तक, सम्पूर्ण सावध व्यापारो का त्याग कर सासारिक झंझटो से अलग हो कर अपनी योग्यतानुसार अध्ययन, चिन्तन आदि द्वारा आत्मा का ध्यान करे । इस व्रत के पाँच अतिचार है -
१. मणदुप्पणिहाणे (मनोदुष्प्रणिधान)-सामायिक-काल मे मन से खोटे अहितकर विचार करना ।
२ वयदुप्पणिहाणे (वचोदुष्प्रणिधान)-कठोर तथा दोषपूर्ण शब्दो का सामायिक-काल मे प्रयोग करना । __ ३ कायदुप्पणिहाणे (कायदुष्प्रणिधान)—सामायिक-काल मे शरीर द्वारा हिंसादि पापकार्य करना।
४ सामाइयस्स सइअकरणया (सामायिकस्मृत्यकरण)-सामायिक करना या ली हुई सामायिक को भूल जाना।
१
उपासकदशाग (अभयदेवसूत्रवृत्ति) १ ६ पृ० १७