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पंचम अध्याय : उपासक-जीवन
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तथा उपासकधर्म का पालन नहीं करता, वह “रात्निक 'अनाराधक कहलाता है।
२ रायणिये-समणोवासगे अप्पकम्मे-अप्पकिरिए आतावीसमिए धम्मस्स आराहते (रात्निक-श्नमणोपासक-अल्पकर्म-अल्पक्रिय-आतापि समित-धर्मास्याराधक)-जो उपासक-अवस्या मे ज्येष्ठ होकर, प्रयम प्रकार के उपासक से भिन्न, अल्प कर्म एव अल्प क्रिया वाला, प्रगाढ श्रद्धा होने के कारण शीतादि कप्टो को सहन करने वाला, गमनभोजनादि कार्यो मे पूर्ण सावधान तथा उपासकधर्म का यथार्थरीति से पालन करने वाला है, वह “रानिक आराधक कहलाता है।
३ ओमरातिणिते समणोवासगे महाकम्मे-महाकिरिए-अणायावी असमिते धम्मस्स अणाराहते (अवमरात्निक-श्रमणोपासक-महाकर्म-महाक्रिय-अनातापी-असमित-धर्मास्यानाराधक )-अवस्था मे लघु होकर भी
जो उपासक महाकर्म तथा महाक्रिय एवं गमनादि क्रियाओ मे असावधान • तथा उपासकधर्म का अनाराधक है, वह "अवमरात्निक अनाराधक" कहा जाता है।
४ ओमरातिणिते समगोवासगे अप्पकम्मे-अप्पकिरिए-आतावी समिए धम्मस्स आराहते (अवमरात्निक-श्रमणोपासक-अल्पकर्म-अल्पक्रियआतापि-समित-धर्मस्याराधक) अवस्था मे लघु किन्तु अल्पक्रिय, अल्पकर्म, गीतादि कप्टो को सहने वाला, गमनादि क्रियाओ मे सावधान तथा उपासक-धर्म का आराधक, श्रमणोपासक "अवमरानिक । आराधक" कहलाता है। __यही चार भेद श्रमणोपासिकाओ के भी कहे गए है।' उपासक-धर्म
वारह गिहिधम्म (गृहीधर्म), ग्यारह उवासगपडिमा (उपासकप्रतिमा) तया अपच्छिम मारणतियसलेहणा (अपश्चिममारणान्तिकसल्लेखना) इस प्रकार कुल ३४ प्रकार का उपासक का धर्म है ।
पचाणुव्वय (पंच अणुव्रत) तया सत्तसिक्खावइय (सप्त शिक्षाव्रत), कुल वारह प्रकार का गृहीधर्म अर्यात् गृहस्थ का धर्म कहा गया है। इन्हे
१. स्थानागसूत्र वृत्ति, ३२०, पृ० २२८ तथा २३० ।