________________
६२]
जैन-अंगशास्त्र के अनुसार मानव-व्यक्तिव का विकाम शुक्ल लेश्या में मलिनता की मात्रा अपेक्षाकृत अलग मे अल्पतर होती चली गई है। ___वेद-वेट लिग को कहते हैं । ये तीन है-१ स्त्री वेद, २ पुरुपवेद, ३ नपुसक वेद।
ये तीनो वेद द्रव्य और भाव-रूप से दो-दो प्रकार के है। द्रव्य वेद का मतलव ऊपर के चिह्न से है और भाव-वेद का मतलव अभिलापा विशेष से है। जिस चिह्न से पुरुप की पहिचान होती है वह द्रव्य पुरुष-वेद है और स्त्री के ससर्गसुख की अभिलापा का भाव पुरुप-वेद है। स्त्री की पहिचान का साधन द्रव्य स्त्री-वेद, और पुरुष के ससर्गमुख की अभिलापा का भाव-स्त्री-वेद है। जिसमे कुछ स्त्री के चिह्न और कुछ पुरुप के चिह्न हो वह द्रव्य नपुसक-वेद और स्त्री-पुरुप दोनो के ससर्गसुख की अभिलापा का भाव नपुसक वेद है । नारकीजीव तथा समूर्च्छन जन्म वाले जीव नपुसक-वेद वाले होते है। शेष समस्त ससारी प्राणी तीनो वेद वाले होते है ।२ । __ ज्ञान:-ज्ञान के दो भेद है-प्रत्यक्ष तथा परोक्ष। जो ज्ञान इन्द्रियो तथा मन की सहायता के विना केवल आत्मा से उत्पन्न होता है उसे प्रत्यक्ष कहते है। इसके विपरीत इन्द्रिय तथा मन की सहायता से होने वाला जान परोक्ष कहलाता है ।
प्रत्यक्ष ज्ञान के तीन भेद है-अवधिज्ञान, मन पर्ययज्ञान तथा केवलजान । अवधिनानावरण कर्म के क्षयोपगम से, इन्द्रिय तथा मन की सहायता के विना कुछ निश्चित अवधि तक के पदार्थो का ज्ञान अवधिज्ञान है । इसके दो भेद है-भवप्रत्ययावधि तथा क्षायोपगमिकावधि ।
जो अवधिज्ञान जन्म से प्राणियो को प्राप्त होता है उसे भवप्रत्ययावधिनान कहते है। यह जान देव तथा नारकियो के होता है । जो अवधिनान तप आदि अनुष्ठान के द्वारा अवधिज्ञानावरण कर्म के क्षयोपगम से प्राप्त होता है उसे क्षायोपशमिकावधिज्ञान कहते
..१ ममवायाग, ६, स्थानाग, ५०४
ममवायाग, १५६ ३ "जान पाँच प्रकार का है-आभिनिवोधिकजान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान,
मन पर्ययज्ञान, तथा केवलज्ञान ।" -स्थानाग, ४६३.