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शाकटायन व्याकरण की शैली का प्रभाव तो हेम पर सर्वाधिक है। यहां एक उदाहरण देकर उक्त कथन का स्पष्टीकरण किया जाता है। पाणिनि ने 'पारमध्येषष्ठ्यावा' २।१।१८, पूज्यपाद ने 'पारे मध्येतयावा' १।३।१५ और शाकटायन ने 'पारेमध्येऽन्तः षष्ठ्या वा' २।१।६ सूत्र लिखा है। हेम ने उक्त सूत्र के स्थान पर 'पारेमध्येऽन्तः षष्ठ्या वा' सूत्र लिखा है। उपर्युक्त प्रसिद्ध वैयाकरणों के सूत्र की हेम के स्त्र के साथ तुलना करने पर अवगत होता है कि हेम ने शाकटायन का सर्वाधिक अनुकरण किया है। ____ शाकटायन के 'ननपूजार्थध्वजचित्रे' ३।३।३४ का अमोघवृत्ति सहित हेम ने 'न नृप पूजार्थध्वजचित्रे' ७१।१०६ में शब्दश: अनुकरण किया है। यद्यपि हेम ने अपने पूर्ववर्ती वैयाकरणों से बहुत कुछ लिया है तो भी अपनी मौलिक प्रतिभा द्वारा शब्दानुशासन में अनेक नवीनताएं लाने का उनका प्रयास प्रशंस्य है ।
हेम शब्दानुशासन का अष्टम अध्याय प्राकृत भाषा का अनुशासन करता है। इसमें ४ पाद और कुल १११६ मूत्र हैं । प्रथम पाद में स्वर और व्यंजन विकार, द्वितीय में संयुक्त व्यंजन विकार, तृतीय में सर्वनाम, कारक, कृदन्त एवं चतुर्थपाद में धात्वादेश, शौरसेनी, मागधी, पैशाची, चूलिका पैशाची तथा अपभ्रंश का अनुशासन वर्णित है । प्राकृत भाषा की जानकारी के लिए इससे बड़ा और सर्वांगपूर्ण व्याकरण और कोई नहीं है। पाणिनि ने जिस प्रकार वैदिक संस्कृत और लौकिक संस्कृत भाषा का अनुशासन किया, उसी प्रकार हेम ने लौकिक संस्कृत तथा उसकी निकटवर्ती प्राकृत का नियमन उपस्थित किया। भाषा के तत्त्वों की जानकारी हेम की अद्भुत है । हैमशब्दानुशासन इतना पूर्ण है कि इस व्याकरण के अकेले अध्ययन से ही लोकप्रचलित सभी पुरातन भारतीय भाषाओं की यथेष्ट जानकारी हो सकती है। यह गुजरात का व्याकरण कहलाता है । हैमशब्दानुशासन पर निम्न टीकाएं उपलब्ध हैं--
नाम
कर्ता
संवत्
लघुन्यास
हेमचन्द्र के शिष्य रामचन्द्र गणि हेमचन्द्र कालीन लघुन्यास
धर्मघोष न्यासोद्धार
कनकप्रभ हेमलघुवृत्ति
काकाल कायस्थ हेमचन्द्र के समकालीन हैमवृहद्वृत्तिढुंढिका सौभाग्यसागर
१५६१ हैमढुंढिकावृत्ति
उदय सौभाग्य हैमलघुवृत्तिढुंढिका मुनिशेखर हेमअवचूरि
धनचन्द्र ५८ : जैन विद्या का सांस्कृतिक अवदान