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रचना की है । यही भावसेन कातन्त्र की रूपमाला टीका के कर्त्ता भी हैं । इनका एक 'विश्वतत्व प्रकाश' नामक ग्रन्थ भी उपलब्ध है ।
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७. रूपसिद्धि - पाणिनि सूत्रों पर लघुसिद्धान्त कौमुदी का निर्माण इसलिए हुआ कि जिज्ञासुओं को संक्षेप में पाणिनीय शब्दानुशासन का बोध बिना किसी क्लेश के हो सकें । इस बात को ध्यान में रखकर दयापाल मुनि ने इस टीका की रचना की है । यह लघु सिद्धान्त कौमुदी के समान उपयोगी है । दयापाल के गुरु का नाम मतिसागर था । टीकाकार पार्श्वनाथ चरित और न्यायविनिश्चय के कर्त्ता वादिराज सूरि के सधर्मा थे । पार्श्वनाथ चरित की रचना शकसंवत् ६४७ में हुई है । अतः टीकाकार का समय भी उपर्युक्त ही है । "
हैमशब्दानुशासन
आचार्य हेम का व्यक्तित्व जितना गौरवास्पद है, उतना ही प्रेरक भी । इनमें एक साथ ही वैयाकरण, आलंकारिक, दार्शनिक, साहित्यकार, इतिहासकार, पुराणकार, कोषकार, छन्द अनुशासक और महान युग-कवि का अन्यतम समवाय हुआ है। हेम के इन विभिन्न रूपों में उनका कौन-सा रूप सशक्त है, यह निश्चय करना कठिन है । पर इतना अवश्य कहा जा सकता है कि वैयाकरण हेम अपने क्षेत्र में अद्वितीय हैं ।
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के पूर्व पाणिनि चान्द्र, पूज्यपाद, शाकटायन और भोजदेव आदि कितने ही वैयाकरण हो चुके हैं । इन्होंने अपने समय में उपलब्ध समस्त शब्दार्थ का अध्ययन कर एक सर्वांगपूर्ण, उपयोगी एवं सरल व्याकरण की रचना कर संस्कृत और प्राकृत दोनों ही भाषाओं को पूर्णतया अनुशासित किया है । तत्कालीन प्रचलित अपभ्रंश भाषा का अनुशासन लिखकर हेम ने इस भाषा को तो अमर बना ही दिया है, किन्तु अपभ्रंश के प्राचीन दोहों को उदाहरण के रूप में उपस्थित कर लुप्त होते हुए महत्त्वपूर्ण साहित्य के नमूनों की रक्षा भी की है। वास्तविकता यह है कि शब्दानुशासक हेम का व्यक्तित्व अद्भुत है । इन्होंने धातु और प्रातिपदिक प्राकृति और प्रत्यय, समास और वाक्य, कृत और तद्धित, अपव्यय और उपसर्ग प्रभृति का निरूपण, विवेचन एवं विश्लेषण किया है ।
शब्दानुशासन के क्षेत्र में हेमचन्द्र ने पाणिनि, भट्टोजि दीक्षित और भट्टिकाकार्य अकेले ही सम्पन्न किया है । इन्होंने मूत्रवृत्ति के साथ प्रक्रिया और उदाहरण भी लिखे हैं । संस्कृत शब्दानुशासन सात अध्यायों में और प्राकृत शब्दानुशासन एक अध्याय में- - इस प्रकार कुल आठ अध्यायों में अपने अष्टाध्यायी शब्दानुशासन को समाप्त किया है ।
संस्कृत शब्दनु शासन के उदाहरण संस्कृत याश्रय काव्य में और प्राकृत शब्दानुशासन के उदाहरण प्राकृत याश्रय काव्य में लिखे हैं ।
जैनाचार्यों का व्याकरणशास्त्र को योगदान : ५३