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प्रायः बहुव्रीहि समास में होता है । जैसे न, दुस्, सु, इनसे परे प्रजा शब्दान्त बहुव्रीहि से अम् प्रत्यय; न, दुस् तथा अल्प शब्द से परे मेधा शब्दान्त बहुव्रीहि से अम् प्रत्यय; जाति शब्दान्त बहुव्रीहि से छः प्रत्यय एवं धर्म शब्दान्त बदुव्रीहि से अम् प्रत्यय होता है । इसके पश्चात् बहुव्रीहि समास में पुंवद्भाव, ह्रस्व प्रभृति अनुशासनों का नियम है । सुगन्धि, पूतगन्धि, सुरभिगन्धि, घृतगन्धि आदि सामासिक प्रयोगों के साधुत्व के लिए इत् प्रत्यय का विधान किया है । बहुव्रीहि समास समाप्त करते ही अव्ययीभाव समास का प्रकरण आरम्भ हो जाता है तथा युद्धवाच्य में ग्रहण और प्रहरण अर्थ में केशाकेशि और दण्डादण्डि को अव्ययीभाव समास माना है । यतः शाकटायन के अनुसार अव्ययीभाव समास के प्रधान दो भेद हैं – अन्य पदार्थ प्रधान और उत्तर पदार्थ प्रधान । अतः 'केशांश्च केशांश्च परस्परस्य ग्रहणम् यस्मिन् युद्धे' इस प्रकार के साध्य प्रयोग विग्रह वाक्य में अन्य वाक्य प्रधान अव्ययीभाव समास है । पाणिनि ने जिन प्रयोगों को बहुव्रीहि समास में गिनाया है, उनमें से कतिपय शाकटायन में अव्ययीभाव समास में परिगणित किये गये हैं ।
शाकटायन का तद्धित, कृदन्त और तिङन्त प्रकरण भी प्रायः पाणिनि के अनुसार है । परन्तु इन प्रकरणों में प्रत्यय विधान और प्रत्ययों के अर्थ अपनी मौलिकता समेटे हुए हैं । कुशल अनुशासक ने उस शिल्पी का कार्य किया है, जो पुराने उपादानों को लेकर भी भवन का नये ढंग से निर्माण करता है ।
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शाकटायन शब्दानुशासन की सात टीकाएं अब तक उपलब्ध हैं । विवरण निम्न प्रकार है ।
१. अमोघवृत्ति - यह राष्ट्रकूट नरेश अमोघवर्ष के नाम पर लिखी गई है । स्वयं सूत्रकर्त्ता ही इस वृत्ति के रचयिता हैं । यह सबसे बड़ी वृत्ति है ।
२. शाकटायनन्यास – यह अमोघवृत्ति पर प्रभाचन्द्र कृत न्यास है । इस ग्रन्थ के केवल दो अध्याय उपलब्ध हैं ।
३. चिन्तामणि टीका ( लघीयसी वृत्ति ) – यक्ष वर्मा ने अमोघवृत्ति को संक्षिप्त कर यह टीका लिखी है । व्याकरणशास्त्र की दृष्टि से यह टीका अत्यन्त उपयोगी है ।
४. मणिप्रकाशिका -- अजितसेन ने चिन्तामणि के अर्थ को व्यक्त करने के लिए इस टीका का निर्माण किया है। अनुशासन की दृष्टि से यह टीका भी अध्येताओं के लिए उपयोगी है ।
५. प्रक्रिया संग्रह - अभयचन्द्र ने सिद्धान्त कौमुदी के ढंग की यह टीका लिखी है । जो पाणिनीय तन्त्र के लिए भट्टोजि दीक्षित ने कार्य किया है, वैसा ही यह कार्य है ।
६. शाकटायन टीका - वादिपर्वत वज्र भावसेन वैवेद्य ने इस टीका की ५२ : जैन विद्या का सांस्कृतिक अवदान