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________________ और उन्होंने भी आर्थिक संकट की स्थिति में राज्य की सुव्यवस्था की। तोलाशाह महाराणा सांगा के परम मित्र थे। इन्होंने मेवाड़ के प्रधानमंत्री पद के सांगा के प्रस्ताव को विनम्रता से अस्वीकार किया किन्तु अपने न्याय, विनय, दान, ज्ञान से बहुत कीर्ति अर्जित की। इन्हें अपने काल का कल्पवृक्ष कहा गया है। इनके पुत्र कर्माशाह सांगा के प्रधानमंत्री थे। इन्होंने शहजादे की अवस्था में गुजरात के बहादुरशाह को उपकृत कर शत्रुञ्जय मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया। इनके अतिरिक्त और कई जैन प्रधानमंत्री हुए जिन्होंने मेवाड़ राज्य की अविस्मरणीय सेवाएं की। महाराणा लाखा के समय नवलाखा गोत्र के रामदेव जैनी प्रधानमंत्री थे। ___महाराणा कुंभा के समय बेता भंडारी तथा गुणराज प्रमुख धर्मधुरीण व्यापारी व जैन वीर थे। इसी समय रत्नाशाह ने राणपुर का प्रसिद्ध मंदिर बनवाया। महाराणा विक्रमादित्य के समय के कुम्भलगढ़ के किलेदार आशाशाह ने बाल्य अवस्था में राणा उदयसिंह को संरक्षण दिया। मेहता जयमल अच्छावत व मेहता रतनचन्द खेतावट ने हल्दीघाटी के युद्ध में वीरता दिखाकर वीरगति प्राप्त की। महाराणा अमरसिंह का मंत्री भामाशाह का पुत्र जीवाशाह था और महाराणा कर्म सिंह का मंत्री जीवाशाह का पुत्र अक्षयराज था। महाराणा राजसिंह का मंत्री दयालशाह था। महाराणा भीमसिंह के मंत्री सोमदास गांधी व मेहता मालदास थे। सोमदास के बाद उसके भाई सतीदास व शिवदास मेवाड़ राज्य के प्रधानमंत्री रहे। महाराणा भीमसिंह के बाद रियासत के अंतिम राजा महाराणा भूपालसिंह तक सभी प्रधानमंत्री जैनी रहे। द्वितीय महाराणा मंग्रामसिंह के समय कोठारी भीमसिंह ने युद्ध में दोनों हाथों से तलवारें चलाकर जो रण-कौशल दिखाया वह इतिहास की अपूर्व घटना है। इस प्रकार हम देखते हैं कि मेवाड़ राज्य के आरम्भ से अन्त तक सभी प्रधानमंत्री जैनी थे। इन मंत्रियों ने न केवल मेवाड़ राज्य की सीमा की कार्यवाहियों के संचालन तक अपने को सीमित कर राज्य की सुव्यवस्था की बल्कि अपने कृतित्वव्यक्तित्व से जनजीवन की गतिविधियों को भी अत्यधिक प्रभावित किया और इस राज्य में जैन मंदिरों के निर्माण व अहिंसा के प्रचार-प्रसार के भरसक प्रयत्न किए। हम पाते हैं कि जिन थोड़े कालों में दो-चार अन्य प्रधानमंत्री रहे उन कालों में मेवाड़ राज्य में व्यवस्था के नाम पर बड़ी विपम स्थितियां उत्पन्न हुई। इसलिए मेवाड़ के इतिहास के स्वर्णकाल में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले जैन अमात्यों के वंशधरों को महाराणाओं ने इस पद के लिए पुनः आमंत्रित किया और बाद में यह परम्परा ही बन गई कि प्रधानमंत्री जैनी ही हो । मेवाड़ में जैन धर्म : १६३
SR No.010327
Book TitleJain Vidya ka Sanskrutik Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Dwivedi, Prem Suman Jain
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1976
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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