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________________ बाँद का बताया है। इस शिलालेख की भाषा भी अशोक के शिलालेख की भाषा के समान और लिपि भी ब्राह्मी है। यह जैन शिलालेख भारत में पाये गए सभी शिलालेखों में प्राचीन तथा भारतीय इतिहास में प्रथम है। लिपि-अध्येता भी इसी शिलालेख से अपने अध्ययन का शुभारम्भ मानते हैं। इस शिलालेख का समय ४३३ वर्ष ईसा-पूर्व है। इस शिलालेख के ऐतिहासिक प्रमाण के आधार पर मेवाड़ का जैन धर्म से संबंध महावीर के काल से ही पाया जाता है। महावीर के बाद समस्त जैनाचार्यों की पहली संगिति स्थूलभद्र की अध्यक्षता में पाटलिपुत्र में हुई। स्थूलभद्र का स्वर्गवास वि० सं० २५४ ईसा-पूर्व में माना जाता है। अतः यह संगिति अवश्य ही इसके पहले हुई होगी। दूसरी संगिति स्कंदलाचार्य की अध्यक्षता में मथुरा में हुई। इस संगिति में मेवाड़ का प्रतिनिधित्व करने वाले जैनाचार्यों को 'मज्झमिया' शाखा संबोधित कर विशिष्ट महत्त्व प्रदान किया गया जिससे इस नगरी का प्रमुख जैन केन्द्र होना सिद्ध होता है । मज्झमिका का वर्णन महर्षि पाणिनि ने भी वस्त्र के संबंध में किया है, जो सारे भारतवर्ष में प्रसिद्ध था। पाणिनि के काल को कुछ लोग ई० पू० छठी शताब्दी बताते हैं तो कुछ ईसा-पूर्व की चौथी शताब्दी। मज्झमिका के इस शिलालेख से पाणिनि का काल भी आगे बढ़ता है और इस नगरी का भारत के प्राचीनतम नगरों में महावीर के काल से संबंध जुड़ जाता है। पाणिनि की व्याकरण के महाभाष्यकार पतंजलि को अनद्यतनकाल का उदाहरण देने के लिए मज्झमिका नगरी के अतिरिक्त कोई अवलंबन नहीं मिला। ___ मज्झमिका का शिलालेख किसी जैनकृति के निर्माण की स्मृति-स्वरूप बनाया गया होगा। इसके साथ ही मेवाड़ में सबसे प्राचीन प्रतिमा उदयपुर के पास सविना गांव में उपलब्ध हुई है। यह आठवीं शताब्दि की जैन प्रतिमा है, जिसके संबंध में कन्नड़ भाषा में शिलालेख है । आयड़ में कन्नडभाषी कर्नाटक व्यापारियों का यहां आकर व्यवसाय करना और यहां लोगधर्मी कार्यों में आर्थिक सहयोग देने के ऐतिहासिक प्रमाण हैं । चित्तौड़ में अभी भी ऐसी जैन प्रतिमा विद्यमान है, जिस पर कन्नड़ भाषा में शिलालेख है। ___अशोक के समय में उसकी आज्ञा से सारे देश में जीव-हिंसा निषेध थी। अतः मेवाड़ में भी निषेध होगी। अशोककालीन लिपि में मज्झमिका नगरी में एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण शिलालेख मिला है जिसमें (स) व भूतानं दयार्थ' पाठ है, जो सर्व जीवों की दया के प्रचार के लिए लिखा गया है । अशोक के पौत्र सम्प्रत्ति के हिस्से में मालवा और मेवाड़ के राज्य आए। वह जैन धर्म का प्रबल अनुयायी था तथा जनश्रुति के अनुसार उसने सहस्रों जैन मंदिर बनवाए। मेवाड़ में सातवीं शताब्दी तक जैन धर्मावलंबी मौर्य राजाओं का राज्य था जिससे यहां जैन धर्म का अच्छा मेवाड़ में जैन धर्म : १६१
SR No.010327
Book TitleJain Vidya ka Sanskrutik Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Dwivedi, Prem Suman Jain
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1976
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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