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________________ पंडित भानुकीति; ' १३०८ के छठे मूर्तिलेख में वर्धमान पुरान्वय', १३०८ के सातवें दो मूर्तिलेख में प्रागवटान्वय', १३०८ के आठवें मूर्तिलेख में पोरवालान्वय', १३०६ के मूर्तिलेख में लाटवागड़संघे कल्याणकीति', १३२६ के मूर्तिलेख में खंडेलकगच्छे', १२२२ के मूर्ति लेख में खंडेलन्वय', १२२२ के मूर्तिलेख में पोरवालान्वय', १२३१ के मूर्तिलेख में वर्कटान्वय', १२२० के मूर्तिलेख में आचार्यान्वय", १५०६ के मूर्तिलेख में श्रीकाष्ठासंघ वागड़संघे भट्टारक धर्मकोति", १६६१ के मूर्तिलेख में तपागच्छ भट्टारक कीर्ति जयदेव, १६१० के मूर्तिलेख में श्री सेनाचार्येव", १४६६ के मूर्तिलेख में कुन्दकुन्दाचार्यान्वय भट्टारक पदमनन्दि ततपट्टे भट्टारक सकलकीर्ति", ११९० के मूतिलेख में श्रीकीति के प्रशिष्य वसुपतिकीति५, १२२८ के मूर्तिलेख में माथुर संघे पंडिताचार्य धर्मकीर्ति और उनके शिष्य आचार्य ललितकीर्ति", बिना तिथि के मूतिलेख में मण्डलाचार्य गुणचन्द्र के प्रशिष्य और मण्डलाचार्य जिनचन्द्र के शिष्य मण्डलाचार्य सकलचन्द्र तथा उनके गुरुभ्राता हेमकीर्ति आदि का उल्लेख उपलब्ध है। १. मूर्तिसंख्यक, १६४ २. वही, १२७ ३. वही, १२६, पृ० १६३ ४. वही, १६४ ५. वही, २२७ ६. वही, ३० ७. वही, ७१ ८. वही, १६५ म प प १०. वही, १२४ ११. वही, ३४ १२. वही, २० १३. वही, ४५ १४. वही, ४७ १५. वही, १८१ १६. वही, २७३ १७. वही, ४७ १८२ : जैन विद्या का सांस्कृतिक अवदान
SR No.010327
Book TitleJain Vidya ka Sanskrutik Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Dwivedi, Prem Suman Jain
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1976
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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