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शुल्कगृह से दो पारुत्थ द्रम्म प्रतिदिन देने की स्वीकृति दी थी।' जिनवल्लभ सूरि के पट्टधर जिनदत्त सूरि ने अपने शिष्यों को धार में वृतिपंजिकादि लक्षण शास्त्र का अध्ययन करने भेजा था तथा स्वयं ने उज्जयिनी, धार, चित्तौड़ और वागड़ प्रदेश में जैन धर्म के प्रचारार्थ यात्राएं की थीं। नरवर्मन के शासनकाल में कई जैन मंदिर और मूर्तियों का निर्माण हुआ । भोजपुर की पार्श्वनाथ प्रतिमा के अभिलेख से विदित होता है कि ११०० ई० में चिल्लन ने उसे नरवर्मन के राज्यकाल में स्थापित किया था । '
११०९ ई० में अर्थना अभिलेख से ज्ञात होता है कि भूषण ने वागड़ के परमार शासक विजयराज के राज्यकाल में उथूणक में एक जैन मंदिर का निर्माण और अभिनन्दन जिन को मालवा के अंतर्गत वर्णित किया है । जयानन्द ने नीमाड़ के वनों के निकट लक्ष्मी का 'प्रवासगीति' में तीर्थ रूप में उल्लेख किया है ।" दाहोद से १२० कि०मी० के तालनपुर जैन तीर्थ में कई मंदिरों के अवशेष और मूर्तियां मिली हैं तथा ६६५ ई० के एक अभिलेख में इस स्थल को तुंगिपट्टन कहा गया है। नीमाड़ का बड़वानी भी जैन तीर्थ है, जहां की बावनगजा मूर्ति प्रसिद्ध है तथा अभिलेखों से १२७६ ई० और १३३१ ई० में जैन मंदिरों का पुनर्मस्कार ज्ञात होता है । उनको भी वर्तमान में पावागिरि (द्वितीय) तीर्थ के रूप में प्रतिष्ठित करने के प्रयास किये जा रहे हैं ।
दिगम्बर जैन पुरातत्व संग्रहालय उज्जैन में मानव प्रदेश से एकत्रित कर कई जैन मूर्तियां प्रदर्शित की गई हैं, जिनमें से कुछ के पादपीठ पर उत्कीर्ण अभिलेख जैनाचार्यों, भट्टारकों, संघों, गणों, गच्छों आदि पर विशद प्रकाश डालते हैं । विक्रम संवत् के इन अभिलेखों में १३०८ के मूर्तिलेख में वागड़ संघीय आचार्य कल्याणवर्धन, १३०८ के दूसरे मूर्तिलेख में लाटवागड़ान्वय कल्याणकीर्ति, ' १३०८ के तीसरे मूर्तिलेख में बागड़ान्वय कल्याणकीर्ति'; १३०८ के चौथे मूर्तिलेख में लाटवागड़मंघे भट्टारक कल्याण कीर्ति", १३०८ के पांचवें मूर्तिलेख में
१. खरतरगच्छ बृहदगुर्वावली, पृ० १३ २ . वही
३. एपिग्राफिका इंडिका, पृ० ३५
४. वही, २१
५. जैन तीर्थ सर्व संग्रह, पृ० ३१३ एवं ३२०
६. वही
७. मूर्तिसंख्यक १७
८. वही, २१
६. वही, १३० १०. वही, १६३
मालवा में जैन धर्म ऐतिहासिक सर्वेक्षण : १८१