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________________ महाराष्ट्र में जैन धर्म डॉ० विद्याधर जोहरापुरकर भारत के प्रायः सभी प्रदेशों में जैन धर्म का प्रसार न्यूनाधिक मात्रा में हुआ है । दक्षिण भारत, गुजरात, राजस्थान तथा बिहार में जैन धर्म के कार्य से संबद्ध ग्रंथ सुविदित हैं । महाराष्ट्र के विषय में ऐसा अध्ययन अभी नहीं हुआ है। यहां मैं इस प्रदेश में जैन धर्म के प्रसार के विषय में प्राप्त प्रमुख संदर्भों का संक्षिप्त अवलोकन प्रस्तुत कर रहा हूं । गुणभद्र के उत्तरपुराण ( पर्व ६२ श्लो० २८० - २ ) के अनुसार ग्यारहवें और बारहवें तीर्थंकरों के मध्यवर्ती समय में प्रथम बलदेव विजय का विहार गजध्वज पर्वत पर हुआ था तथा जिनसेन के हरिवंशपुराण ( सर्ग ६३ श्लो० ७२-७३) के अनुसार बाईसवें तीर्थंकर के समय अंतिम बलदेव बलराम का देहावसान तुंगीगिरि पर हुआ । ये स्थान महाराष्ट्र के नासिक और धूलिया जिले में तीर्थों के रूप में प्रसिद्ध हैं । ऐतिहासिक दृष्टि से महाराष्ट्र में जैन साधुओं की गतिविधियों का विस्तार मौर्य साम्राज्य के समय ( सनपूर्व तीसरी शताब्दी में ) आचार्य भद्रबाहु तथा सुहस्ती के नेतृत्व में हुआ होगा, यह अनुमान किया जा सकता है। इस प्रदेश में जैन साधुओं के विहार का सर्वप्रथम स्पष्ट प्रमाण वह संक्षिप्त शिलालेख है जो पूना जिले में पाला ग्राम के निकट एक गुहा में प्राप्त हुआ है । लिपि के आधार पर यह लेख सनपूर्व दूसरी शताब्दी का माना गया है। इसमें भदंत इंद्ररक्षित द्वारा इस गुहा के निर्माण का उल्लेख है ( धर्मयुग १५-१२-१६६८ में डॉ० सांकलिया ने इसका सचित्र परिचय दिया है ) । महाराष्ट्र के प्रथम ऐतिहासिक राजवंश - सातवाहन वंश की राजधानी प्रतिष्ठान (आधुनिक पैठण, जि० औरंगाबाद) में जैन आचार्यों के विहार के संबंध में कई कथाएं उपलब्ध हैं । प्रभावकचरित ( प्रकरण ४) तथा विविधतीर्थ कल्प (! ( प्रकरण २३) के अनुसार आचार्य कालक ने इस नगर में राजा सातवाहन के आग्रह पर महाराष्ट्र में जैन धर्म : १८३
SR No.010327
Book TitleJain Vidya ka Sanskrutik Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Dwivedi, Prem Suman Jain
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1976
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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