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सर्वसमिकाएं प्रस्तुत कीं और कूट स्थिति द्वारा कई प्रश्न हल किए। काल्पनिक राशि के आविष्कारक वही थे क्योंकि उन्होंने ही सर्वप्रथम उन्हें पहचानकर अद्वितीय प्रतिभा का परिचय दिया । उन्होंने व्यापकीकृत पद्धतिवाले एकघातीय समीकरणों के हल करने के नियम दिए और अनेक अज्ञात वाले युगपत् द्विघातीय समीकरणों को हल किया । महावीराचार्य द्वारा 'ज्योतिष पटल' ग्रंथ भी रचित किए जाने की संभावना डॉ० नेमिचंद्र शास्त्री ने प्रकट की है। उनका ग्रंथ लौकिक गणित ग्रंथ है और उन्होंने संकेत किया है
इतिसंज्ञा समासेन भाषिता मुनि पुङ्गवः । विस्तरेणागमाद्वेद्यं वक्तव्यं यदितः परम् ।।
१-७० गो० सा०सं० पट्खंडागम सिद्धांत ग्रंथ में हमने राशि सिद्धांत और राशि संरचना सिद्धांत गहराई से तथा आधुनिक गणितीय साधनों से विश्लेषित किए हैं, जिन पर शोधपत्र प्रकाशित होने वाले हैं । षट्खंडागम की रचना के संबंध में और आचार्य धरसेन तथा उनके अत्यन्त प्रतिभाशाली शिष्यों आचार्य पुष्पदंत एवं भूतबलि के सम्बन्ध में धवला ग्रंथों में विशेष परिचय मिलता है । आचार्य धरसेन से कसौटी में पूर्ण निपुण उतरकर इन शिष्यों ने उनसे दूसरे अग्रायणी पूर्व के अन्तर्गत चौथे
कर्म प्रकृति प्राभृत का ज्ञान प्राप्त किया । आचार्य पुष्पदन्त ने जिनपालित को दीक्षा देकर, गुणस्थानादि बीस प्ररूपणा - गर्भित सत्प्ररूपणा के सूत्रों की रचना की और जिनपालित को पढ़कर उन्हें भूतबलि आचार्य के पास भेजा । उन्होंने जिनपालित के पास बीस प्ररूपणा - गर्भित सत्प्ररूपणा के सूत्र देखे और उन्हीं से यह जानकर कि पुष्पदन्त आचार्य अल्पायु हैं, अतएव महाकर्म प्रकृति प्राभृत का विच्छेद न हो जाए, यह विचार कर उन्होंने ( भूतबलि ने ) द्रव्यप्रमाणानुगम को आदि लेकर आगे के ग्रंथ की रचना की । श्रुतपंचमी को समारोह कर उन्होंने पुस्तकारूढ़ षट्खण्ड रूप आगम को जिनपालित के हाथ आचार्य पुष्पदन्त के पास भेजा जो कार्य की सम्पन्नता पर अत्यन्त प्रसन्न हुए । पुनः इस सिद्धांत ग्रंथ की उन्होंने चतुविध संघ के साथ पूजा की। यह इस तथ्य का द्योतक है कि उन्हें ज्ञान के प्रति कितनी निष्ठा और प्रेम था। इंद्रनन्दि के श्रुतावतार के अनुसार षट् खंडागम के आद्य भाग पर कुन्दकुन्द आचार्य के द्वारा रचित परिकर्म का उल्लेख मिलता है । इस ग्रंथ का उल्लेख षट्खंडागम के विशिष्ट पुरस्कर्ता वीरसेन आचार्य ने अपनी टीका में कई जगह किया है। इस प्रकार परिकर्म के गणितीय अंश का अभी ज्ञान नहीं है। हो सकता है कि उसमें राशि सिद्धांत और शलाका गणन आदि का प्रथम, सुलभ, सुगम्य रूप विस्तृत रूप से वर्णित हो । षट्खंडागम की परंपरा की द्वितीय महत्त्वपूर्ण रचना पंचसंग्रह है जिसमें जीवसमास, प्रकृति समुत्कीर्तन, कर्मस्तव, शतक और सत्तरि पर क्रमशः २०६, १२, ७७, १०५ और ७० गाथाएं हैं । इसे टीकाकार प्रभाचंद्र द्वारा लघुगोम्मटसार सिद्धांत कहा गया है जो प्राय: ई० सत्रहवीं
१४६ : जैन विद्या का सांस्कृतिक अवदान