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इस पुण्यसन में उपस्थित होने में असमर्थता अनुभव कर रहा हूं।
मुझसे अब प्रवास नहीं होता । अधिक समय बैठा भी नहीं जाता। बोलने की शक्ति भी वैसी नहीं रही। अत: मैं आपके इस सत्र से वंचित रह रहा हूं, इसका मुझे आन्तरिक खेद ही है। मेरे अन्यतम विद्वान् मित्र डा० श्री ए० एन० उपाध्येजी माईसोर से वहां आ रहे हैं। उनका सौहार्दपूर्ण पत्र मिला है। वे मुझे लिखते हैं कि उदयपुर में मुलाकात की आशा रखते हैं, परंतु मैंने उपर्युक्त शारीरिक अस्वस्थता के कारण, उदयपुर पहुंचने के लिए मेरी असमर्थता व्यक्त की है। कष्ट के लिए क्षमा-आपके आयोजन की हृदय से सफलता चाहता हूं
विद्वद्वंशवद मुनि जिनविजय
२ : जैन विद्या का सांस्कृतिक अवदान