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प्रिय विद्वद्वर आचार्य महोदय
डा० श्री रामचन्द्रजी द्विवेदी
सेव में सादर निवेदन कि
राजस्थान और जैन साहित्य
मुनि जिनविजय
आपका एक कृपा-पत्र कुछ समय पहले मुझे मिला। यह जानकर बहुत हर्ष हुआ कि आपकी अध्यक्षता में उदयपुर युनिवर्सिटी के तत्वावधान में, जैन संस्कृति से संबद्ध एक सेमिनार का आयोजन किया जा रहा है । जिस पुण्यभूमि पर उदयपुर विश्वविद्यालय अवस्थित है वह भूमि युगातीत काल से भारत की समुच्चय संस्कृति का एक महत्त्व का केंद्र रही है । महाकवि चक्रवर्ती सम्राट श्री हर्ष ने आधारभेद पाद का प्रात:स्मरणीय उल्लेख किया है । जैन और बौद्ध दोनों संप्रदाय वाले इस स्तुति का पाठ किया करते हैं -- पुरातत्त्ववेत्ताओं ने इस भूमि के विषय में बहुत कुछ संशोधनात्मक कार्य किये हैं ।
जैन संप्रदाय की दृष्टि से भी विचारा जाय तो इस भूमि के आधिपत्य वाले प्रदेश में, जैन संस्कृति और जैन साहित्य का प्रभाव विशेष स्थान रखता है । जिस समय गुहिलोत वंश के प्रतिष्ठापक बापा रावल ने इस भूमि को अपना कर्मक्षेत्र बनाया उससे भी बहुत पहले जैन धर्म-गुरुओं ने इस प्रदेश की जनता को दान, दया, सदाचार विषय के सदुपदेशों से यथेष्ट संस्कार-संपन्न करने का सतत प्रयत्न किया है। जैन इतिहास के अनेक प्रकरण इस भूमि की महत्ता प्रकट करते हैं । जैन साहित्यकारों ने इस भूमि के अनेक गांवों और नगरों में निवास कर छोटी-बड़ी हज़ारों साहित्यिक कृतियों का प्रणयन कर समुच्चय भारती भंडार को सुसमृद्ध किया है ।
आप विद्वज्जनों ने जैन संस्कृति विषयक विद्वद्विचार गोष्ठी का जो सुन्दर आयोजन किया है, एतदर्थ मेरा अनेकानेक हार्दिक अभिनन्दन है |
मेरा स्वास्थ्य अब अत्यधिक क्षीण हो रहा है इसलिए मैं आप द्वारा आयोजित
राजस्थान और जैन साहित्य : १