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जैन विद्या : एक अनुशीलन
डा० रामचन्द्र द्विवेदी ( निदेशक, संगोष्ठी )
उदयपुर संगोष्ठी : भगवान् महावीर के प्रति सामायिक राजस्थान के किसी भी विश्वविद्यालय में प्राकृत अथवा जैन विद्या के अध्ययन और अनुसंधान की व्यवस्था नहीं थी, यद्यपि राजस्थान प्राकृत का अक्षय भंडार और जैन संस्कृति का युगों से मुख्य केंद्र रहा है । उदयपुर विश्वविद्यालय में १६७०-७१ में प्राकृत के अध्ययन की व्यवस्था करने
बाद यह आवश्यक था
कि इस विषय के अध्ययन को सही दिशा प्रदान करने के लिए एक अ० भा० संगोष्ठी आयोजित की जाए । यह हमारे विभाग की अर्हता अथवा पात्रता थी जिसके आधार पर अ० भा० संगोष्ठी के आयोजन का विचार अंकुरित हुआ । किंतु इसके दो सामयिक कारण भी थे । एक तो यह कि प्राकृत भाषा पर चारपांच संगोष्ठियां भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों में हो चुकी थीं किंतु जैन विद्या के अवदान पर कोई चर्चा साक्षात् और तुलनात्मक रूप में किसी भी विश्वविद्यालय में अ० भा० स्तर पर नहीं हुई थी । इस विषय को अपनाने में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को भी कुछ प्राथमिक संकोच था किंतु मेरा यह सौभाग्य था कि जैन विद्या पर अ० भा० संगोष्ठी आयोजित कर सकने का विचार सफल हुआ । दूसरा सामयिक कारण था, भगवान् महावीर का २५०० वें निर्वाण - महोत्सव का १९७४ में होना । कहीं यह महोत्सव केवल सामाजिक उत्सव बनकर न रह जाए इसकी आशंका मेरे मन में थी। इस अवसर को उचित रूप से शैक्षणिक और बौद्धिक बनाने के लिए तथा इस महोत्सव की स्थायिता के लिए यह आवश्यक था कि कुछ वर्ष पूर्व ही इसकी तैयारी के लिए विद्वानों को एकत्र कर उनके विचारों को यथासमय प्रकाशित किया जा सके। यह एक प्रकार से संस्कृत विभाग का सामायिक था ।
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