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________________ प्रत्यक्ष के भेद जैन दार्शनिक परम्परा में प्रत्यक्ष के मुख्य दो भेद किये गए हैं-- १. मांव्यवहारिक या लौकिक प्रत्यक्ष । २. मुख्य या पारमार्थिक प्रत्यक्ष । पारमार्थिक प्रत्यक्ष दो प्रकार का है.--- विकल प्रत्यक्ष तथा सकल प्रत्यक्ष । मतिज्ञान सांव्यवहारिक या लौकिक प्रत्यक्ष है। अवधिज्ञान तथा मनःपर्ययज्ञान विकल प्रत्यक्ष है एवं केवलज्ञान सकल प्रत्यक्ष है। इन प्रकार दार्शनिक परम्परा में प्रत्यक्ष के भेदों का दिग्दर्शन निम्न प्रकार होगा .. प्रत्यक्ष मांव्यवहारिक या लौषिक (नतिज्ञान) मुख्य या पारमार्थिक विकल प्रत्यक्ष या देशप्रत्यक्ष (अवधि तथा मन:पर्यय) सकल प्रत्यक्ष (केवलज्ञान) कुन प्रकार प्रत्यक्ष के सांव्यवहारिक या लौकिक प्रत्यक्ष में इन्द्रिय ज्ञान को कम्मिलित करके दार्शनिक परम्परा ने लौकिक परम्परा का समायोजन किया है, दूसरी ओर मुख्य प्रत्यक्ष के विकल और नकलदों के अंतर्गत अवधि, मन:पर्यय तथा केवलज्ञान की गणना करके आगमिक परंपरा का निर्वाह किया गया है। इनका विशेष विवेचन इस प्रकार है-... सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष . पांव इंद्रियां और मन, इन यथायोग्य छह कारणों से सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष उत्पन्न होता है । इंद्रिय और मन की अपेक्षा से इसके दो भेद कर सकते हैं १. इंद्रिय सांव्यवहारिक १३२ : जैन विद्या का सांस्कृतिक अवदान
SR No.010327
Book TitleJain Vidya ka Sanskrutik Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Dwivedi, Prem Suman Jain
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1976
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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