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________________ पृ० ७५-८२, प्रमेयक० पृ० २२०-२२९ ) । ३. सन्निकर्ष को प्रमाण मानने पर सर्वज्ञ सिद्ध नहीं हो सकता । क्योंकि यदि सर्वज्ञ सन्निकर्ष द्वारा पदार्थों को जानेगा, तो उसका ज्ञान या तो मानसिक होगा या इन्द्रियजन्य । मन और इन्द्रियों की प्रवृत्ति अपने विषयों में क्रमशः होती है तथा उनका विषय भी नियत है, जबकि त्रिकालवर्ती ज्ञेय पदार्थों का अन्त नहीं है । सूक्ष्म, अन्तरित तथा व्यवहित पदार्थों का इन्द्रियों के साथ सन्निकर्ष नहीं हो सकता, अतः उनका ज्ञान भी नहीं होगा । इस तरह सर्वज्ञ का अभाव हो जाएगा (सर्वार्थ० पृ० ५७, तत्वा० पृ० ३६, न्यायकु० पृ० ३२) । उपर्युक्त दोषों के कारण इन्द्रियादि के सन्निकर्ष को प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं माना जा सकता । जरन्नैयायिकों का प्रत्यक्ष- लक्षण जन्नैयायिकों की मान्यता है कि अर्थ का ज्ञान किसी एक कारक से नहीं होता, प्रत्युय कारकों के समूह से होता है। एक-दो कारकों के होने पर भी ज्ञान उत्पन्न नहीं होता और समग्र कारकों के रहने पर नियम से होता है । इसलिए कारकसाकल्य ही ज्ञान की उत्पत्ति में साधकतम कारण है। अतएव वही प्रमाण है । ज्ञान प्रमाण नहीं है, क्योंकि वह तो फल है। फल को प्रमाण मानना उचित नहीं है, क्योंकि प्रमाण और फल भिन्न-भिन्न होते हैं । न्यायमंजरीकार ने लिखा है---"अव्यभिचारिणीमसन्दिग्धामर्थोपलब्धिं विदधती बोधाबोधस्वभावा सामग्रीप्रमाणम् । ” – न्यायमंजरी पृ० १२ । समीक्षा कारकसाकल्य की उपयोगिता को स्वीकारते हुए भी जैन दार्शनिकों ने विशेष रूप से इसका खण्डन किया है (न्यायकु० पृ० ३५-३६, प्रमेयकमल० पृ० ७-१३ ) । उनका कहना है - १. कारकसाकल्य ज्ञान की उत्पत्ति में कारण अवश्य है, पर अर्थोपलब्धि में तो ज्ञान ही कारण है । इसलिए कारकसाकल्य को अर्थोपलब्धि में साधकतम कारण नहीं माना जा सकता । २. यदि परम्परा - कारणों को अर्थोपलब्धि में साधकतम कारण माना जाएगा तो जिस आहार या गाय के दूध से इन्द्रियों को पुष्टि मिलती है, वह आहार तथा दूध देने वाली गाय को भी साधकतम कारण मानना होगा । इस तरह कारणों का कोई प्रतिनियम ही नहीं रह जाएगा । १२४ : जैन विद्या का सांस्कृतिक अवदान
SR No.010327
Book TitleJain Vidya ka Sanskrutik Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Dwivedi, Prem Suman Jain
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1976
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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