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पांडलिपि भी योगिनीपुर में मोहम्मद शाह तुगलक के शासनकाल में लिखी गयो थी। इसकी प्रशस्ति निम्न प्रकार है___ संवत्सरेस्मिन् श्री विक्रमादित्य-गताब्दा : सम्वत् १३६१ वर्षे ज्येष्ठ बुदिE गुरूवासरे अधेह श्री योगिनीपुरे समस्त राजावलि शिरोमुकट माणिक्य खचित नखरश्मौ सुरत्राण श्री मुहम्मद साहि नाम्नी महीं विभ्रति सति अस्मिन राज्ये योगिनी पुरस्थिता-- जैनेतर ग्रंथों की सुरक्षा
यहां एक बात और विशेष ध्यान देने की है और वह यह है कि जैनाचार्यों एवं श्रावकों ने अपने शास्त्र भंडारों में ग्रंथों की सुरक्षा में जरा भी भेदभाव नहीं रखा। जिस प्रकार उन्होंने जैन ग्रंथों की सुरक्षा एवं उनका संकलन किया उसी प्रकार जैनेतर ग्रंथों की सुरक्षा एवं संकलन पर भी विशेष जोर दिया।
जैन विद्वानों ने अथक परिश्रम करके जैनेतर ग्रंथों की प्रतिलिपियां या तो स्वयं की अथवा अन्य विद्वानों से उनकी प्रतिलिपि करवायीं। आज बहुत से तो ऐसे ग्रंथ है जिनकी केवल जैन शास्त्र भंडारों में ही पांडुलिपियां मिलती हैं। इस दृष्टि से आमेर, जयपुर, नागौर, बीकानेर, जैसलमेर, कोटा, बूंदी एवं अजमेर के जैन शास्त्र भंडारों का अत्यधिक महत्त्व है । जैन विद्वानों ने जैनेतर ग्रंथों की सुरक्षा ही नहीं की किंतु उन पर कृतियां, टीका एवं भाष्य भी लिखे । उन्होंने उनकी हिंदी में टीकाएं लिखी और उनके प्रचार-प्रसार में अत्यधिक योग दिया। राजस्थान के इन जैन शास्त्र भंडारों में काव्य, कथा, व्याकरण, आयुर्वेद, ज्योतिष, गणित विषयों पर सैकड़ों रचनाएं उपलब्ध होती हैं। यही नहीं, स्मृति, उपनिषद एवं संहिताओं का भी भंडारों में संग्रह मिलता है। जयपुर के पाटोदी के मंदिर में पांच सौ ऐसे ही ग्रंथों का संग्रह किया हुआ उपलब्ध है।
मम्मट के काव्यप्रकाश की सम्वत् ११२५ की एक प्राचीनतम पांडुलिपि जैमलमेर के शास्त्र भंडार में संगृहीत है। यह प्रति शाकंभरी के कुमारपाल के शासनकाल में अणहिलपट्टन में लिखी गयी थी। सोमेश्वर कवि की काव्यादर्श की सन् ११२६ की एक ताडपत्रीय पांडुलिपि भी यहीं के शास्त्र भंडार में संग्रहीत है। कवि रूद्रट के काव्यालंकार की इसी भंडार में सम्बत् १२०६ आषाढ़ बदी ५ की ताडपत्रीय पांडुलिपि उपलब्ध होती है। इस पर नमिसाधु की संस्कृत टीका है। इसी विद्वान् द्वारा लिखित टीका की एक प्रति जयपुर के आमेर शास्त्र भंडार में संगृहीत है। इसी तरह कुंतक कवि का वक्रोक्तिजीवित, वामन कवि का काव्यालंकार, राजशेखर कवि की काव्यमीमांसा, उद्भट कवि का अलंकारसंग्रह आदि ग्रंथों की प्राचीनतम पांडुलिपियां भी जैसलमेर, बीकानेर, जयपुर, अजमेर एवं नागोर के शास्त्र-भंडारों में संग्रहीत है।
ग्रन्यों की सुरक्षा में राजस्थान के जैनों का योगदान : १०१