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________________ कालिदास, माघ, भारवि, हर्ष, हलायुध एवं भट्टी जैसे संस्कृत के शीर्षस्थ कवियों के काव्यों की प्राचीनतम पांडुलिपियां भी राजस्थान के जैन शास्त्र भंडारों में संग्रहीत हैं। यही नहीं इन भंडारों में कुछ काव्यों की एक से अधिक भी पांडुलिपियां हैं। किसी-किसी भंडार में तो यह संख्या २० तक भी पहुंच गयी है। जैसलमेर के शास्त्र भंडार में कालिदास के रघुवंश की चौदहवीं शताब्दी की प्रति है । इन काव्यों पर गुणरतन सूरि, चरित्रवर्द्धन, मल्लिनाथ, समयसुन्दर, धर्ममेरु, शांतिविजय जैसे कवियों की टीकाओं का उत्तम संग्रह है। किरातार्जुनीय काव्य पर प्रकाश वर्ष की टीका की एकमात्र प्रति जयपुर के आमेर शास्त्र-भंडार में संगृहीत है । प्रकाश वर्ष ने लिखा है कि वह कश्मीर के हर्ष का सुपुत्र है। उदयनाचार्य की किरणावली की एक प्रति टीका सहित आमेर शास्त्र भंडार जयपुर में उपलब्ध है । सांख्य-संप्तति की पांडुलिपि भी इसी भंडार में संग्रहीत है, जो सम्वत् १४२७ की है। इसी ग्रंथ की एक प्राचीन पांडुलिपि जिसमें भाष्य भी है, जैसलमेर के शास्त्र भंडार में उपलब्ध है और वह सम्वत् १२०० की ताडपत्रीय प्रति है। इसी भंडार में सांख्य तत्त्व-कौमुदी (वाचस्पति मिश्र) तथा ईश्वरकृष्ण की सांख्यकारिका की अन्य पांडुलिपियां भी उपलब्ध होती है। पांतजलयोग दर्शन भाष्य (वाचस्पित हर्ष मिश्र) की पांडुलिपि भी जैसलमेर के भंडार में सुरक्षित है। प्रशस्तपाद भाष्य की एक बारहवीं शताब्दी की पांडुलिपि भी यहीं के भंडार में मिलती है। अलंकारशास्त्र के ग्रंथों के अतिरिक्त कालिदास, मुरारी, विशाखदत्त एवं भट्ट नारायण के संस्कृत नाटकों की पांडुलिपियां भी राजस्थान के इन्हीं भंडारों में उपलब्ध होती हैं। विशाखदत्त का मुद्राराक्षस नाटक, मुरारी कवि का अनर्घराघव, कृष्ण मिश्र का प्रबोधचन्द्रोदय नाटक, महाकवि सुबंधु की वासवदत्ता आख्यायिका की ताडपत्रीय प्राचीन पांडुलिपियां जैसलमेर के भंडार में एवं कागज पर अन्य शास्त्र-भंडारों में संगृहीत हैं। अपभ्रंश साहित्य की सुरक्षा अपभ्रंश का अधिकांश साहित्य जयपुर, नागौर, अजमेर एवं उदयपुर के शास्त्र-भंडारों में मिलता है। महाकवि स्वयम्भू के पउमचरिउ एवं रिढ़णे मिचरिउ की प्राचीनतम पांडुलिपियां जयपुर एवं अजमेर के शास्त्र-भंडारों में संग्रहीत हैं। पउमचरिउ की संस्कृत टीकायें भी इन्हीं भंडारों में उपलब्ध हुई हैं। महाकवि पुष्पदन्त के महापुराण, जसहरचरिउ, णायकुमारचरिउ की प्रतियां भी इन्हीं भंडारों में मिलती हैं। अब तक उपलब्ध पांडुलिपियों में उत्तरपुराण की सम्वत् १. देखिये-जन ग्रंथ भंडार्स इन राजस्थान, पृ० २२० २. वही। १०२ : जैन विद्या का सांस्कृतिक अवदान
SR No.010327
Book TitleJain Vidya ka Sanskrutik Avadan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamchandra Dwivedi, Prem Suman Jain
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1976
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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