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हिन्दी ( राजस्थानी ) रचनाएं
१. आराधना प्रतिबोधसार, २. मुक्तावलीगीत, ३. णमोकारफलगीत, ४. सोलहकारणरास, ५. सारसीखामणिरास, ६. शांतिनाथ फागु ।
उक्त संस्कृत रचनाओं का अध्ययन-सौकर्य की दृष्टि से निम्नलिखित वर्गीकरण किया जा सकता है.
(क) पौराणिक या चरितात्मक काव्य ।
(ख) आचारशास्त्रीय ग्रंथ ।
(ग) जैन - सिद्धान्त, तत्त्वचर्चा एवं दर्शन संबंधी ग्रंथ ।
(घ) विविध काव्य - -सुभाषित, स्तोत्र एवं कथाकाव्य ।
प्रस्तुत निबंध में कवि के संस्कृत चरित-काव्यों का साहित्यिक मूल्यांकन ही प्रस्तुत किया है ।
(क) पौराणिक या चरितात्मक काव्य
जैन - पुराण या चरितकाव्य से अभिप्राय उन ६३ शलाका पुरुषों ( २४ तीर्थं कर, १२ चक्रवर्ती, ६ नारायण, ६ प्रतिनारायण, ६ बलदेव) के जीवन-चरित का वर्णन है जो इतिहासातीत युग में हुए हैं। इन महापुरुषों के चरितकाव्यों को दिगम्बर संप्रदाय में चरित्र एवं पुराण दोनों ही शब्दों से अभिहित किया जाता है । आचार्य जिनसेन ने आदिपुराण में 'पुराण' शब्द की व्याख्या में एक व्यापक अर्थ का समावेश किया है ।' आचार्य सकलकीर्ति ने भी उत्तर आदिपुराण के आधार पर आदिपुराण की रचना की जिसका दूसरा नाम वृषभनाथचरित्र भी है । पुराण 'के स्थान पर चरित शब्द को उपयुक्त समझते हैं अतः ग्रंथारंभ में इसका संकेत इस प्रकार करते हैं-
वे
" यच्चरित्रं पुस प्रोक्तं मया बालेन तत्प्रोक्तु कयं
महामतिविशारदैः । शक्यं प्रियं सताम् ॥”
-- आदिपुराण, सर्ग १, श्लोक ३१
तद्धितंवचः । मुमुक्षुभिः ।।
- वही, सर्ग १, श्लो० ३५
" तज्ज्ञानं तच्चरितं च तत्काव्यं श्रोतव्यं कथनीयं च चिंतनीयं
उद्देश्य
जैन - पुराणों का उद्देश्य केवल शलाकापुरुषों का जीवन-वर्णन ही नहीं है अपितु कथा के व्याज से जैन धर्म के गंभीर तत्त्वों को व्यावहारिक धरातल पर प्रतिष्ठित
१. आचार्य जिनसेन, आदिपुराण, पर्व २, श्लोक ६६-१५४
६० : जैन विद्या का सांस्कृतिक अवदान