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चोटरवंशी राजा जैन धर्म के अनन्य भक्त थे । बड़े २ धनवान जैन व्यापारी यहां रहते थे। राजा और प्रजा सब ही जैनधर्म के उपासक थे । सन् १४४२ ई० में ईरान के व्यापारी अब्दुल रज्जाक ने मूड़बद्री के चन्द्रनाथ स्वामी के मंदिर को देखकर लिखा था ! कि "दुनियां में उसकी शान का दूसरा मंदिर नही है ।' (...has not its equal in the universe) उसने मंदिर को पीतल का ढला हुआ और प्रतिमा सोने की बनी बताई थी । श्राज भी कुछ लोग प्रतिमा सुवर्ण की बतलाते हैं, परन्तु वास्तव में वह पाँच धातुओं की है, जिसमें सोने और चांदी के अंश अधिक हैं। यह प्रतिमा अत्यन्त मनोहर लगभग ५ गज ऊँची है। यह मंदिर सन् १४२६-३० में लगभग ८-९ करोड़ रुपये की लागत से बनवाया था। इस मंदिर को ठीक ही त्रिभुवन- तिलक चूड़ामणि कहते हैं। यहां यहीं सबसे अच्छा मंदिर है । वह चार खनों में बटा हुआ है। दूसरे खन में सहस्रकूट चैत्यालय' है । उसमें १००८ साँचे में ढली हुई प्रतिमायें अतीव मनोहर हैं। इस मंदिर के अतिरिक्त यहाँ १८ मंदिर और हैं, जिनमें 'गुरु बस्ती' और 'सिद्धान्त बस्ती' उल्लेखनीय है । सिद्धान्तबस्ती में 'षटखंडाकू - मसूत्रादि' सिद्धांत ग्रन्थ और हीरा पन्ना आदि नव रत्नो की ३५ मूर्तियां विराजमान है । गुरुबस्ती में मूलनायक की प्रतिमा आठ गज ऊंची श्रीपार्श्वनाथ भगवान् की हैं। पंचों की आज्ञा से और भण्डार में कुछ देने पर इन अद्भुत प्रतिमाओं के और सिद्धांत ग्रन्थों के दर्शन होते हैं। धन्य मंदिरों में भी मनोज्ञ प्रतिमायें विराजमान हैं। सात मंदिरों के सामने मानस्तम्भ बने हुये हैं। इन सब मंदिरों का प्रबंध यहां के भट्टारक श्री ललितकीति जी के तत्वावधान में पंचों के सहयोग से होता है। शाम को रोशनी और भारती होती है। यहां पर श्री पं० लोकनाथ जी शास्त्री ने वीरवाणी विलास सिद्धांत भवन में ताड़पत्रों पर लिखे हुए जैन शास्त्रों का