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[६४] अच्छा संग्रह किया है यह स्थान मनोहर है। राजामों के महलों में भग्नावशेष हैं । यहां से १० मील दूर कारकल जाना चाहिये।
. कारकल अतिशयक्षेत्र इस क्षेत्र का प्रबंध यहाँ के भट्टारकजी के हाथ में है। उन्ही के मठ में ठहरने की व्यवस्था है । यहां. १० मंदिर प्राचीन प्रौर मनोज्ञ लाखों रुपये की कीमत के बने हुए है। पूर्व की ओर एक छोटी-सी पहाड़ी एक फर्लाग ऊपर चढ़ने पर बाहुबलि स्वामी की विशालकाय प्रतिमा के दर्शन करके मन प्रसन्न हो जाता है। यह प्रतिमा करीब ४२ फीट ऊंची है। वहीं पर २० गज ऊंचा एक सुन्दर मान स्तम्भ अद्भूत कारीगरी का दर्शनीय है । इस मूर्ति को १४३२ में कारकल नरेश वीर-पाण्डव ने निर्माण कराया था। यहाँ भैरव ओडेयर वंश के सब ही राजा प्रायः जैनी थे। सान्तार वंश के महाराजाधिराज लोकनाथरस के शासनकाल में सन १३३४ में कुमुदचन्द्र भट्टारक के बनवाये हुये शांतिनाथ मंदिर को उनकी बहनों और राज्यधिकारियों ने दान दिया था। शक सं० १५०८ में इम्मडिभैरवराज ने वहाँ से सामान छोटी पहाड़ी पर ' 'चतुं मुख बस्ती' नामक विशाल मंदिर बनवाया था। इस मंदिर के चारों दिशाओं में दरवाजे हैं। और चारो ओर १२ प्रतिमायें सात. सात गज की अत्यन्त मनोज्ञ विराजमान हैं। यहां से पश्चिम दिशा की ओर ११ विशाल मंदिर अनूठे बने हुये हैं। यहां कुल २३ जैन मंदिर हैं। कारकल से ३४ मील की दूरी पर वारंग ग्राम है ।
वारंग-क्षेत्र वारंग क्षेत्र हरी-भरी उपत्यका के बीच में स्थित मनोहर दिखता है। यहाँ कुल ३ जैन मंदिर है। नेमीश्वर-बस्ती नामक मंदिर कोट भीतर दर्शनीय हैं। इस मन्दिर में इस क्षेत्र सम्बन्धी 'स्थलपुराण' और माहात्म्य सूरक्षित था। अब वह वारंग मठ के
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