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[६२] समय यहां पर ७२० जैन मंदिर थे, परन्तु लिंगायतों ने उन्हे नष्ट कर दिया। वर्तमान मन्दिरों के अहाते में अगणित पाषाण भग्नावशेष पड़े हुए पुरातन जैन गौरव की याद दिलाते हैं। यहां से सीधा वेणूर व मूड़बद्री जाना चाहिए। मार्ग अत्यन्त मनोरम है । पहाड़ों के दृश्य उपत्यकानों की हरियाली और झरनों के कलकलनाद मन को मोह लेते हैं। गांवों में भी जिन मंदिर हैं। रास्ता बड़ा टेड़ा-मेढ़ा है-संसार भ्रमण का मानचित्र ही मानो हो । हलेविड से वेणूर लगभग ६० मील दूर है।
वेरपूर वेणूर जैनियों का प्राचीन केन्द्र है। यहां एक समय अजिल. वंश के जैनी राजाओं का राज्य था। उनमें से वीर निम्मराज ने शाके १५२६ (सन् १६०४ ई०) में यहां पर बाहुबलि स्वामी की एक ३७ फीट ऊँची खड्गासन प्रतिमा प्रतिष्ठित कराई और 'शांतिनाथ स्वामी' का मंदिर निर्माण कराया था। मूर्ति ग्राम से सटी हुई परायुनी नदी के किनारे बने हुए प्राकार में खड़ी हुई अपनी अनूठी शान्ति बिखेर रही है। प्राकार में घुसते ही दो मंदिर हैं। इनके पीछे एक बड़ा पार्श्वनाथ का मंदिर अलग हैं, जिसमें हजारों मनोहर प्रतिमायें विराजमान हैं। इनके अतिरिक्त यहां चार मंदिर प्रौर हैं। यहाँ भे मूडबद्री जावे।
. श्री मूविंदुरे (मूडबद्री ) अतिशय क्षेत्र
वेणूर से मूडबद्री सिर्फ १२ मील है। रास्ते के गांव में भी जिन मन्दिर है। यहां से मैदान में चलना पड़ता है। पहाड़ का उतराव-चढ़ाव वेणूर में खतम हो जाता है। चन्दन, काजू, सुपारी नारियल आदि के पेड़ों से भरे हुए बहुत मिलते हैं, यहां जैन धर्मशाला सुन्दर बनी हुई हैं, उसमें ठहरना चाहिए। प्राचीन होयसल काल में मूडबद्री जैनियों का प्रमुख केन्द था। यहां के.