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________________ [३८] अत्यन्त सुन्दर है। यहीं के एक मन्दिर में दि० जैन मुनिसंघ पर अग्नि उपसर्ग हुआ था- अग्नि की ज्वालाओं में शरीर भस्मीभूत होते हुये मुनिराज शान्त और वीरभाव से उसे सहन करते रहे थे। जैन धर्म की यह वीरतापूर्ण सहनशीलता अद्वितीय है। पुरुषों में क्या, महिलाअों अबलाओं में भी वह प्रात्मबल प्रगट करती है कि वे धर्ममार्ग में अद्भुत साहस के कार्य प्रसन्नता से कर जाती हैं। पारा जैन धर्म के इस वोरभाव का स्मरण दिलाता हैं। यहाँ चौक में श्रीमान् स्व० बाबू देवकुमार जी द्वारा स्थापित 'श्रीजैन सिद्धांत भवन, नामक संस्था जैनियों में अद्वितीय है। यहां प्राचीन हस्तलिखित शास्त्रों का अच्छा संग्रह है जिन में कई कलापूर्ण, सचित्र और दर्शनीय हैं । आरा से पटना (गुलजार बाग) जाना चाहिए। पटना पटना मौर्यों की प्राचीन राजधानी पाटलिपुत्र है। जैनियों का सिद्धक्षेत्र है। सेठ सुदर्शन ने वीर भाव प्रदर्शित करके यहीं से मोक्ष प्राप्त किया था। सुरसुन्दरी सदृश अभयारानी के काम कलापों के सन्मुख सेठ सुदर्शन अटल रहे थे। आखिर वह मुनि हुए और मोक्ष गए । गुलजारबाग स्टेशन के पास ही एक टेकरी पर चरणपादुकायें विराजमान हैं, जो यात्री को शीलवती बनने के लिए उत्साहित करती हैं। वहीं पास में एक जैन मन्दिर और धर्मशाला है। शिशुनागवंश के राजा अजातशत्रु, श्री इन्द्रभूति और सुधर्माचार्य जी के सम्मुख जैन धर्म में दीक्षित हुए थे। उनके पोते उदयन ने पाटलिपुत्र नगर बसाया था और सुन्दर जिन मंदिर निर्माण कराये थे । यूनानियों ने इस नगर की खूब प्रशंसा की थी। मौर्यकाल की दिगम्बर जैन-प्रतिमायें यहां भूगर्भ से निकली हैं। वसी दो प्रतिमायें पटना अजायबघर में मौजूद हैं। दि० जैनियों के यहां ५ मंदिर व एक चैत्यालय है। जैनधर्म का सम्पर्क पटना से प्रति
SR No.010323
Book TitleJain Tirth aur Unki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages135
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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